वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे
जब लोग मुझसे सवाल करते थे
जब मैं मुँह ढ़ककर सो जाता था
लोग जब लानत भेजते थे मुझपे
मैं जब जीता था दूसरों के भरोसे
जब ये बेरहम ज़माना नोंचता था
मेरे ख़ाल को माँस से अलग कर
मैं चीख़ता था इक ख़ामोशी में
जब लोग बेहूदगी बताते थे इसे
जब ये ख़ून ठहर जाता था मुझमें
ज़हर होकर फ़ैल जाता था जब
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे
जब खुले बर्तन खटकते थे रात में
जब ये घर अँधेरे में चूर रहता था
जब लिहाफ़ सर्दियों से हार जाती
जब आँख खाली-खाली रह जाती
रात जब मातम के लिये आती थी
जब थकन बैठ कर हो जाती थी
किताब जब कुछ नहीं बताती थी
मेरा हारना उन दिनों में वाज़िब था
रो लेना बिलखकर ज़ायज भी था
तमाम लोगों के पत्थरों से ज़ख़्म
और आह! भरकर फ़िर लौटना
इस तरह इन महीनों का गुजरना
भूलाता नहीं है दिल कुछ भी ये..
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
जब लोग मुझसे सवाल करते थे
जब मैं मुँह ढ़ककर सो जाता था
लोग जब लानत भेजते थे मुझपे
मैं जब जीता था दूसरों के भरोसे
जब ये बेरहम ज़माना नोंचता था
मेरे ख़ाल को माँस से अलग कर
मैं चीख़ता था इक ख़ामोशी में
जब लोग बेहूदगी बताते थे इसे
जब ये ख़ून ठहर जाता था मुझमें
ज़हर होकर फ़ैल जाता था जब
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे
जब खुले बर्तन खटकते थे रात में
जब ये घर अँधेरे में चूर रहता था
जब लिहाफ़ सर्दियों से हार जाती
जब आँख खाली-खाली रह जाती
रात जब मातम के लिये आती थी
जब थकन बैठ कर हो जाती थी
किताब जब कुछ नहीं बताती थी
मेरा हारना उन दिनों में वाज़िब था
रो लेना बिलखकर ज़ायज भी था
तमाम लोगों के पत्थरों से ज़ख़्म
और आह! भरकर फ़िर लौटना
इस तरह इन महीनों का गुजरना
भूलाता नहीं है दिल कुछ भी ये..
वो गुजरा हुआ दिन.. याद है मुझे।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
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