Friday, 11 October 2013

..इक बात हैं..

..इक बात हैं जो होंठों से उतर-कर पन्नों पे आती नहीं..
..इक राज़ हैं जो सीने से निकल-कर तुमेह समझाती नहीं..
..इक दरियां हैं..
..कुछ समन्दर सा मुझमें..
..जो मेरे होने का एहसास दिलाती नहीं..
..इक शब हैं..
..शमां हैं बीती कुछ रातें हैं..


..इक तन्हा ज़िन्दगी में मेरे बस यहीं कुछ खास हैं..
..वर्ना सब इक-दो लफ़्ज़ों के सहारें मनघडन बकवास हैं..
..इक रात हैं जो काली और भयानक हैं..
..इक साथ हैं जो थामें टूटी इक पतली लाठी हैं..
..इक रब हैं जो मेरी सुनता नहीं..
..इक मौत हैं जो मेरी आती नहीं..
..इक ये जो बेज़ान ज़िन्दगी हैं मेरी जो मेरी सुनती नहीं..
..ये इक कहानी हैं जो मेरी खत्म होती नहीं..
..इक रास्ता हैं जिसे मन्ज़िल कभी मिलती नहीं..
..इक कहावत हैं जो कभी सीने से मिटती नहीं..
..इक तूफान हैं जो थमता नहीं..
..इक आग हैं जो सीने की मेरी कभी बुझती नहीं..
..इक बात हैं जो होंठों से उतर-कर पन्नों पे आती नहीं..!

No comments:

Post a Comment