Monday, 28 October 2013

..इक ख्वाब अँधेरी-धुँधली सी..

..इक ख्वाब अँधेरी-धुँधली सी..
..लेकिन खुद से बेपरवाह बेखौफ मुझसे जुडी..
..लेकिन हाँ कुछ दूर हैं खडी..
..थोडा सा मै और थोडी रात हैं उसका हिस्सा..
..बदलती ज़िन्दगी की तस्वीरों में..
..थोडा वजूद हैं मेरा उसका किस्सा..


..तस्वीरों में ढल गए गुज़र गए बीत गए..
..वो सारें-बात..
..ज़िन्दगी की राह में..
..अब अकेला-तन्हा खडा-पडा हैं उसका खिस्सा..
..टूट गए सारें ख्वाब बिखर गए अरमां सारे..
..अन्धेरा के बाद यूँ जो अचानक सा हुआ सबेरा..
..इक सायां था..
..मेरा मुझसे कुछ जुडा सा..
..वो भी रात बाद अलग सा हो गया..
..जैसे कल सबेरा मैं था खडा अकेला..!

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