..इक धीमी सी दबी सी..
..लेकिन हाँ मगर जीनें सी..
..आवाज़ मुझे रातों के बीच..
..सडक किनारें से सुनाइ देती हैं..
..ठंडी कंपकंपाती बहती हवाओं के बीच..
..पत्तों से सर छुपाती..
..इक मासूम सी तस्वीर दिखाईं देती हैं..
..काली-घनी रातों के बीच..
..इक माँ की बेटी रोती दिखाईं देती हैं..
..सर छुपाने को ज़गह नहीं..
..दामन बारिशों के बीच..
..भींगती दिखाईं देती हैं..
..होंठों की परेशानियॉ आंखों से दिखाईं देती हैं..
..घनी काली-रातों के बीच भी..
..ना ज़ानें सब-कुछ कैसे साफ-साफ दिखाईं देती हैं..
..सारी परेशानियों के बीच..
..इक दरिंदे की तस्वीर साफ़ दिखाईं देती हैं..
..दाँतों के बीच फंसी होंठों से निकली ओहहह की आवाज़..
..गहरें सन्नाटें में कुछ चींख सी सुनाईं देती हैं..
..हालतें मज़बूर हाथें कमज़ोर..
..आँखों के बीच भरे समुन्दर से भंवर दिखाईं देती हैं..
..इस घनी-कुहरी-काली रातों के बीच..
..इक मासुम की निकली हाय साफ़-साफ़ सी सुनाईं देती हैं..
..पता ना बात ऐसी क्या हैं..?
..ज़ो सारी प्रशाशन, पुलिस, सत्ता के ठेकेदारों को ये रास आ रही हैं..
..कोइ होगी ज़रूर बात इसमें..
..आवाजें मेरी भी कुछ धीमी ही निकलती हैं..
..डर किस बात की हैं कुछ समझ में नहीं आती..
..और ना ही कभी कुछ दिखाईं देती हैं..
..लेकिन हर काली रात के बाद..
..इक मासूम की ज़ान जाती साफ़-साफ़ दिखाईं देती हैं..!
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