..दिल तो कहना बहोत कुछ चाहता हैं..
..खिलाफ तेरे..
..मगर होंठों को मेरी..
..इज़ाज़त नहीं तेरे खिलाफ होने की..
..बातें सारी तेरी..
..संगीन-ज़ुर्म भरी..
..चाहता हैं दिल मिटा दे इसे यादों से मेरी..
..मगर मेरे रूह को इज़ाज़त नहीं..
..तेरे खिलाफ जीने की..
..दिल चाहता हैं हटा दे..
..सारे रश्मों-रिवाज़ों को..
..सामाज़ की बातों को..
..कर दे किनारें अपने सारे अधूरे ख्वाबों को..
..छुडा के दामन फरेब से अपना..
..ज़ीने की इक नयी सी कुछ उम्मीद जगा दे..
..दिल चाहता हैं कुछ ऐसा हो जाए..
..जो बात पन्नों पे सज़ाऊँ..
..तो आँखों से गिरते बूँदे ना छुपाऊँ..
..दिल चाहता हैं कोइ बात भी बनाऊं..
..तो ज़माने के नज़र में आ ज़ाऊँ..
..दिल चाहता हैं लिख्खें ये सारें मेरे अल्फाज़..
..महबूब मेरे तुम होंठों से इक बार फिर दुहराओ..
..दिल चाहता हैं ये सारी दिल की बातें..
..तुम तक कैसे भी पहुँचाऊं..
..दिल कहना चाहता तो और कुछ बहोत हैं..
..मगर ज़ां ये तुमेह मैं कैसे समझाऊं..
..दिल की बात तेरे दिल तक कैसे पहुचाऊँ..!
..खिलाफ तेरे..
..मगर होंठों को मेरी..
..इज़ाज़त नहीं तेरे खिलाफ होने की..
..बातें सारी तेरी..
..संगीन-ज़ुर्म भरी..
..चाहता हैं दिल मिटा दे इसे यादों से मेरी..
..मगर मेरे रूह को इज़ाज़त नहीं..
..तेरे खिलाफ जीने की..
..दिल चाहता हैं हटा दे..
..सारे रश्मों-रिवाज़ों को..
..सामाज़ की बातों को..
..कर दे किनारें अपने सारे अधूरे ख्वाबों को..
..छुडा के दामन फरेब से अपना..
..ज़ीने की इक नयी सी कुछ उम्मीद जगा दे..
..दिल चाहता हैं कुछ ऐसा हो जाए..
..जो बात पन्नों पे सज़ाऊँ..
..तो आँखों से गिरते बूँदे ना छुपाऊँ..
..दिल चाहता हैं कोइ बात भी बनाऊं..
..तो ज़माने के नज़र में आ ज़ाऊँ..
..दिल चाहता हैं लिख्खें ये सारें मेरे अल्फाज़..
..महबूब मेरे तुम होंठों से इक बार फिर दुहराओ..
..दिल चाहता हैं ये सारी दिल की बातें..
..तुम तक कैसे भी पहुँचाऊं..
..दिल कहना चाहता तो और कुछ बहोत हैं..
..मगर ज़ां ये तुमेह मैं कैसे समझाऊं..
..दिल की बात तेरे दिल तक कैसे पहुचाऊँ..!
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