Tuesday, 15 November 2016

मुहब्ब्त

दिलों के बीच दरम्याँ होती हैं.. रुठना मनाना भी होता हैं.. प्यार के साथ-साथ नफ़रत करने का भी हक होता है.. लेकिन मुहब्बत में कभी जुदाई नहीं होनी चाहिए वर्ना मुहब्ब्त बे-ईमान हो जाती हैं।

P.S.- सोनम गुप्ता वाले Case से इसका कोई संबंध नहीं है। :)

दिल जो ज़ब्त हो जाएं तो समझना तुम

दिल जो ज़ब्त हो जाएं तो समझना तुम
मैं मर जाऊँगा तब मुझे भी देखना तुम।

सारे ग़मों पर पर्दे अपने-आप ही लगेंगे
उन पर्दों के पीछे से बच निकलना तुम।

मैं मान लूंगा ख़ुदसे हर शिकस्त अपनी
हर बार मुझसे इल्तिज़ा ना करना तुम।

ज़ख़्म मेरे बदन पर बरसों से उगती हैं
किसी हमदर्द पर यूं ना फिसलना तुम।

ये हवा भी अजीब सी लगती है हमपर
कोई आग बनकर मुझपर जलना तुम।

ये जो तेरी हसीन सी कायनात है वर्मा
इसी में आख़िर कभी मर बैठना तुम।

नितेश वर्मा और तुम।
#Niteshvermapoetry

यूं ही एक ख़याल सा..

अरे! ऐसे क्यूं शर्मां रही हो? क्या वो मैं नहीं जिससे तुमने शादी की थी?
चल, बदमाश!
हाय!
इन्हें तो छोड़ दो.. इन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
तुम्हें पता है ये सिर्फ़ कंगन नहीं है ये तो हमारे दिल की आत्मा है जो हर बार एक-दूसरे से टकराने पर एक नज़ाकत से अपने छुअन को दूर तक सुनाती हैं।
अच्छा..! और ये चूड़ियाँ.. इनके बारे में भी तो कुछ कहो?
हुम्म्म्म! ये चूड़ियाँ नहीं है ये तो हम दोनों की बातें हैं जो हर बार एक-दूसरे से गले लगकर खिलखिलाती रहती हैं.. मुस्कुराती रहती हैं।
तुम भी ना.. तुम बड़े Unromantic हो!
हें..! ये क्या अज़ीब बात है?
इन्हें तो छोड़ो.. इन बालियों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?
ये बालियाँ नहीं है ये तो मेरी दो बातें हैं जो तुमसे कहना चाहता हूँ।
अच्छा जी! क्या हैं वो दो बातें.. हमें भी तो बताओ?
हमेशा तुमसे प्यार करूंगा।
और दूसरी?
मुझे कभी धोखा मत देना, चाहे कुछ भी क्यूं ना हो जाएं। मैं सबकुछ बर्दाश्त कर लूंगा लेकिन मुझे किसी धोखे में कभी मत रखना।
यार! तुमने तो मुझे पूरा Senti कर दिया और वो भी आज।
नहीं! मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था।
तुम भी ये बालियाँ पहनो ना मुझे भी तुमसे कुछ कहना है।
अरे! मैं बालियाँ पहनकर कैसा लगूँगा तुम ऐसे ही कह दो.. मैं तुम्हारी हर बात मानूंगा।
दो बातें हैं- एक तो हमेशा प्यार करूँगी।
और दूसरी?
दूसरी की तुम मुझपर कभी शक़ मत करना, चाहें कुछ भी क्यूं ना हो जाएं। मैं हमेशा तुम्हारी ही बनके रहना चाहती हूँ.. मुझे ख़ुद से कभी अलग मत करना.. तुम्हारे बिना मैं मर जाऊंगी।
अरे! ऐसा मत कहो, प्लीज। Come.. सीने से लग जाओ.. ऐसी बातें कभी दुबारा मत करना।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

अरे! ये किस दौर से गुजर रहा हूँ मैं

अरे! ये किस दौर से गुजर रहा हूँ मैं
इम्तिहान में ही बसर कर रहा हूँ मैं।

दिल खाली मकान हुआ है मत पूछो
यूं टूटा नहीं हूँ बस बिखर रहा हूँ मैं।

किससे बताऊँ हाल-ए-दिल अपना
अब तो हर शख़्स से डर रहा हूँ मैं।

जब ख़्याल उतर आये सामने कोई
ये ना समझना के मुकर रहा हूँ मैं।

मैं तो खाली हाथ आया था रास्ते पे
अब इन्हीं पत्थरों पर मर रहा हूँ मैं।

वक़्त कुछ गुजर गया कुछ हैं वर्मा
सब कह रहे हैं के फिर रहा हूँ मैं।

नितेश वर्मा

इतनी उदास थी आँखें उसकी

इतनी उदास थी आँखें उसकी
कि शाम भी बहुत बेचैन रही
दिल कमबख़्त लिपटा रहा
एक सिहरन सीने में क़ैद हुई
कुछ पूंजी जमा थी अमानती
एक चोर चेहरा भी छिपा था
एक दरख़्त था, पुराना सा
जहाँ दो दिल लड़खड़ाएँ थे
कुछ छाले ज़ुबान पर थे
कहीं परिंदे फड़फड़ाएँ थे
सब एक धुँआ सा था.. तब
कहीं हमने लाश जलाएँ थे
वहीं फ़िर आज लौट आया
नम आँखें तो हैं.. लेकिन
वो बेचैनी और वो उदासी
उससे भी कुछ गहरी-गहरी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

ग़लतबयानी: किस्सा मुख़्तसर

ये क्या बंजारन की तरह पसरी हुयी है। ये ले इन पुर्ज़ों में से कोई एक चुन, फ़िर आगे जो कुछ तय करना होगा वो बाद में तय होगा.. अब्बू ने कहा है।
ये सब क्या है?
ये सवाल मेरी होनी चाहिये थी। बहरहाल तू इनमें से कोई एक पुर्ज़ी चुन।
क्यूं?
शादी नहीं करनी है क्या तुझे?
शादी और अभी? अभी तो मैं पढ़ रही हूँ। मैं अभी शादी नहीं करूँगी। तू जा और अब्बू को सब समझा दे।
मैंने समझाया था लेकिन जो ज़वाब सुनकर आयी हूँ ना अग़र बता दूँ तो ज़मीन में शर्म से गड़ जाओगी तुम।
बता दे! मैं नहीं मरी जा रही।
शर्म कर! बदचलन।
क्या?
अब्बू ने कहा था,यार! मैंने जब कहा कि वो अभी कॅालेज जाती है, अभी उसकी उम्र ही क्या है? अभी वो शादी कैसे कर सकती है?
अब्बू ने फिर दो टुक में ज़वाब दे दिया - शादी की उम्र नहीं है और उस आवारा के साथ इश्क़ निभाने की उम्र है। बाइक पर बैठकर राउंड लगाने वाली उम्र की हो गयी है ना। तू जा और बस उसे इनमें से एक चुनने को कह दे। मुझसे मज़ीद बहस ना कर।
तो ले! चुन इनमें से कोई एक।
ले जा! ले जाकर फ़ेंक दे इसे कहीं। मैं किसी को नहीं चुन रही।
देख सुन! तू ना उस हरामी आवाराग़र्द को छोड़। वो ना रनबीर कपूर बनकर मुहल्ले की हर लड़कियों को लिफ्ट कराता रहता है। सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। बात मान और इनमें से कोई एक चुन।
मैं नहीं चुन रही किसी को। तू ही चुन ले तूने तो पहले भी चुन रखा है ना अपने शहजादे को भूलाकर किसी और को। क्या हुआ पड़ गया ना मोटा भैंसा तेरे गले में। अब गले में ले के लटकाती घूम रही है ना, बहुत ख़ुश होगी तू।
यार! लड़कियों का क्या है लड़कियां तो मुतासिर हो ही जाती हैं, इसलिये तो लड़के उन्हें देखने आते हैं, उनसे मुतासिर होते हैं तब जाकर निक़ाह पढ़ाया जाता है।
मैं नहीं मानती ये सब बकवास!
यार! मुझे देख वो मेरा कितना ख़याल रखते है। अग़र मैं उस फटीचर के साथ भाग गयी होती तो क्या होता? गिल्लू को देख! एक औरत के लिये उसकी औलादें ही सबकुछ होती हैं। अग़र आज गिल्लू ख़ुश ना होता.. तो मेरे इश्क़ का क्या मतलब रह जाता।
ख़याल करता होगा लेकिन प्यार नहीं। घर में लाइट्स तो ख़ूब होंगे लेकिन कैंडल लाइट डिनर कभी नहीं हुयी होगी। माना, सर भी दबाता होगा सबसे छिपाकर लेकिन आँख बचाकर चुटियाँ नहीं काटता होगा। वो तुम्हारी परवाह करता होगा लेकिन तुमसे इश्क़ नहीं।
तू चक्करों में फ़ँसी हुयी है मेरी जान! मैं तुझे कैसे समझाऊँ?
तू इसे चक्कर कह कर रही है?
शादी से पहले सब चक्कर ही होता है।
और शादी के बाद?
शादी के बाद.. परिवार, बच्चे, ज़िम्मेदारियाँ।
घुटता इश्क़.. ये भी तो होता है। मुझे पता है तू आज भी ख़ुश नहीं है। दिखावा चाहे तू लाख़ कर। आज भी तू समय बचाकर मुस्तफ़ा भाई को चुपचाप देखने आ जाती है। नज़रे बचाकर देखती है। छत पर जाती है.. निहारती है उन्हें। कपड़े उतारते हुये उनकी उंगलियों को छूना चाहती है और कमबख़्त तब पीछे से आकर गिल्लू का बच्चा तुझे पकड़ लेता है। तू क्या चाहती है? जिस तरह तू जी रही है मैं भी उसी तरह अपनी ज़िंदगी गुजारूँ?
तू फिर भाग जा उसके साथ।
कहाँ तक?
जहाँ तक भाग सकें।
किससे छूटकर भागू तुमसे, अब्बू से, या अम्मी से या भाई से? भागकर कहाँ जाऊँ? उस हरामी ने ऐसे प्यार में फ़ँसाया है कि उसके बिना अब जी भी नहीं सकती। कमीना बीच रस्ते पर मुझे पकड़कर मेरी नक़ाब उतारते हुये कहता है - इतनी ख़राब नाक छिपा रही हो और इतनी खूबसूरत आँखें देख रही है। हाय!
तो मर जा, कमीनी! कमसेकम हमारी जान तो छूटे इस मसलेहत से। हाय! अल्लाह क्या ज़माना आ गया है?
फ़िर वो भी मर जायेगा। मेरे बिना वो भी नहीं जी सकता।
फ़िर तो ठीक है, तुम दोनों मर जाओ। ये मुकम्मल इश्क़ की जगह कहीं और ही है, जाओ मरो अब!
मैनू तेरी नज़र लग जावै ना
अँखियाँ नू.. कौल सतावै ना।

नितेश वर्मा
#YuHiEkKhyaalSa #Niteshvermapoetry

अज़ब ही तस्वीर है ज़िंदगी की

अज़ब ही तस्वीर है ज़िंदगी की
थोड़ा मैं उदास भी
शक्ल मुझको मिली नहीं
पढ़ूँ क्या किसी की प्यास कहीं
बदन ख़ून से सराबोर है
पसीना मिट्टी में गुम हुआ
कौन साथ ताउम्र रहेगा यहाँ
मैं ख़ुद मुंतज़िर इसके लिए
भीगी पलकें ज़िंदा लाश होके
मैं फिर रहा हूँ क्यूं आख़िर
झूठलाकर मैं सब बकवास यहीं
कर रहा हूँ क्या तलाश सही।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

वो अज़ीब सा दिन उखड़ा हुआ सा

वो अज़ीब सा दिन उखड़ा हुआ सा
दिल में गहरी थी ख़ामोशियाँ
वक़्त किसी जंज़ीर की तरह
गले में हो जैसे लिपटी फ़ासियाँ
ये बदन अकड़न से चरमराती
धूप में बहलाती हो जैसे वादियाँ
इक उम्र का थका मैं मुसाफ़िर
और कहीं से झिलमिलाती वो
जैसे दीये से जगमगाती आशियाँ
इन तमाम उलझनों के बाद भी
उसे देखकर ख़ुश होना ही होता है
समझो जैसे हो किसी तेज़ सी
बारिश के बाद हसीं आसमानियाँ।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

कुछ कहो ना

कुछ कहो ना
कुछ ऐसा कि
मैं लिपट जाऊँ तुमसे
तुम थामों मुझे और
मैं फिसल जाऊँ ख़ुदसे
कुछ कहो ना

कोई किताब खोलकर
ख़्वाबों में मुझे पढ़ो
ख़यालों की चाँदनी रात में
मुझको लिबास कर ओढ़ो
ढ़ूंढों मुझे तुम सिराहने
ख़लाओं में कुछ बात करो
कुछ कहो ना

शायरी करो कभी
कभी रुठ जाओ मुझसे
जुल्फों को बिखराओ कभी
कभी ये सुर्ख़ नाज़ुक होंठ
रख जाओ मुझपर
मुझमें ही रहो ना
कुछ कहो ना

किसी महकी सुब्ह में मिलो
या उदास शाम में आओ
ख़त में मुझे मज़्मून करो
या स्याह में मुझको डुबाओ
किसी पते पर तुम आओ
या इस दिल में रह जाओ
कुछ कहो ना

सितारों से कुछ बात करो
रात कुछ देर छत पर रहो
हज़ारों बातों में पागल है
कुछ इस तरह से घायल है
थोड़ा हसीं मुझमें बहो ना
कुछ तो कहो ना
कुछ कहो ना

गर्म चाय की चुस्कियाँ
सर्दियों की रात में हम
एक लिहाफ़ में अकड़ते
मुहब्बत भरे दो जिस्म
रास्तों को जवां करो
मुझे थोड़ी सी जुबां दो
कुछ कहो ना

कुछ कहो ना
कुछ ऐसा कि
मैं लिपट जाऊँ तुमसे
तुम थामों मुझे और
मैं फिसल जाऊँ ख़ुदसे
कुछ कहो ना।

नितेश वर्मा और कुछ कहो ना।

#Niteshvermapoetry

अज़ब माहौल है अज़ब हैं ज़मानेवाले

अज़ब माहौल है अज़ब हैं ज़मानेवाले
क्यों करे हो-हल्ला ये ग़र्द मचानेवाले।

मुझमें रहते हैं इश्क़ के कारोबारी भी
ऐसे ही कइयों दिल-फ़ेंक दीवानेवाले।

ग़लत बात से कई बार घबराता हूँ मैं
अच्छी बात पर हैं कई चुप रहनेवाले।

सुब्ह सितारा रोशन था वो कहाँ गया
घनी रातों में लेकर दीये दिखानेवाले।

साँसों पर भी है तेरा नाम लिखा वर्मा
हर बार के तुम्हीं मुझसे मुकरनेवाले।

नितेश वर्मा

एक वो तस्वीर भी तुम्हारी होगी

एक वो तस्वीर भी तुम्हारी होगी
जो सीने में बरसों से क़ैद होगी
जिस पर कई ज़ख़्म पले होंगे
जो बगावत भी करती होगी
कई मरतबा मरहम लगे होंगे
उस जिस्म के सलवटों पर
कई छींटे ख़ून के पड़े होंगे
होंठ शुष्क अधमरे से होंगे
हवाएँ भी जिसे जलाती होगी
कोई आँच तन दहकाती होगी
दिल जिसका बिखरा सा होगा
जो ख़याल में यूंही पाग़ल होगी
हर रोज़ जो ख़ुदको ख़ुदसे ही
छिपाती होगी.. डराती भी होगी
जो मुझे कभी ना भूलाती होगी
एक वो तस्वीर भी तुम्हारी होगी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

मैंने भी बहुत वक़्त गुजारें हैं रोने में

मैंने भी बहुत वक़्त गुजारें हैं रोने में
किस्मत मेरी मुझसे महरूम है क्यूं
मुझे ख़ुद ही लानत भेजती है अना
सदियों से है सितारा मेरा कोने में।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा..

वो मुस्कुरा कर तुमसे घंटों गले तो लगा रहता होगा.. तुम्हारे जिस्म से चिपककर सर्दियों की कई रात भी गुजारी होंगी.. पर तुम्हारे सीने से लगकर कभी खुल के नहीं रोया होगा.. तुम्हारी गोद में सिर रखकर कभी नहीं सोया होगा।
बातें तो तुमसे हज़ार की होंगी लेकिन दिल की धड़कनों को कभी सुनाया नहीं होगा.. वो तुम्हारी सारी tashan तो पूरी करता होगा.. लेकिन उसके अन्दर क्या चल रहा है वो यह चाहकर भी कभी तुम्हें नहीं बताया होगा।
उसकी आँखें हज़ार सवाल करती हैं कभी तुम उनमें उतर कर देखना, अग़र तुम्हें उनमें डूब ना जाने का ख़ौफ ना हो तब.. अग़र तुम्हें उन तक़लीफ़ों से कोई उबन ना हो तब.. वो फ़िर तुम्हें भी थाम लेगा.. उसे किसी अतीत से तुम ही बाहर ला सकती हो, मैं नहीं। मैं तो बस एक गुजरी हुई दास्तान हूँ.. और तुम माज़ी में उलझी हुई एक ख़ुदगंवार। मेरी मानो तो थोड़ा सफ़र करो और निकल चलो कहीं दूर इस मायाजाल से.. एक हक़ीकत का सितारा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा।

God bless you 😊
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

वो सुबह की.. झीनी ख़ुशबू सी है

वो सुबह की.. झीनी ख़ुशबू सी है
जो उतर जाती है मुझमें कभी
हर साँस के दरम्यान यकायक
और इक ज़िद से थामती है
अपनी नाज़ुक उंगलियों से
मेरी कलाई को और ख़ींचती है
एक डोर की तरह मुझे
बड़ी मासूमियत से अपनी ओर
और मैं ख़ीचा चला जाता हूँ
एक मुस्कुराहट के साथ
हौले-हौले से करीब उसके
फ़िर वो मुझमें घुल जाती है
और मैं जल जाता हूँ दीये सा
रोशनी बिखरती है क़ायनात में
और फुलझड़ी दिलों के अंदर।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #HappyDiwali 😊

फ़िर मुश्किलात मुझे उसी दर पर ले आयी

फ़िर मुश्किलात मुझे उसी दर पर ले आयी
जहाँ से छूट चले थे, वहीं से ख़बर ले आयी।

बड़े जतन से संभाला था जो पत्थर हमने ही
वही मेरे सर पड़ी और मुँह ज़हर ले आयी।

उसकी नज़र और मुहब्बत की छाँव में रहे
एक सराब तिश्नगी की मुझे शहर ले आयी।

ये दिन भी याद रहेगा तमाम उम्र मुझे वर्मा
एक मुकाम की फ़साद सौ लहर ले आयी।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry

किसी ख़्वाब की सुब्ह है तू

किसी ख़्वाब की सुब्ह है तू
हर दरम्यान हर जगह है तू
इक नींद की आँच में हैं हम
करवटों में सुलग रही है तू

नज़र जब मुझमें ख़ामोश रही
बादलों में बारिश सी हो गयी
मैं लापता कमबख़्त बैठा रहा
भीगती सायों में दो ज़िस्में कहीं

जब हुआ ना तलब होश का
मैं बेवज़ह फ़िरता ख़ामोश सा
पते का कोई जिक्र ही नहीं
मंजिल से दूर मैं बेहोश सा

कुछ यूं मैं आके ख़ुदसे मिला
दिल को ही जैसे दिल से गिला
बात पूरी ना हुई, मैं बेचैन रहा
हवाओं में काग़ज जैसे ना हिला।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा..

इंसान को कभी इतना भी नहीं गिरना चाहिए कि वो अपने गमों के सौदे में अपनी अना बेच दे। किसी दर्द के इलाज़ में अपनी ग़ैरियत बेच दे और फ़िर भी जब कुछ हासिल ना कर पाए तो घुटन से मर जाएं। बुरा वक़्त इतना भी बुरा नहीं होता कि उससे मुँह फेर लिया जाए.. ये एक सबक होता है उन तमाम अनुभवों का जो हम इस ज़िंदगी में महसूस कर पाते हैं।
किसी से सिफ़ारिश लगवाना और उससे मुँह की खाना, उसकी तमाम बेफ़िजूलियत को सुनना, उसके हाँ में हाँ मिलाना। हर बार ख़ुद से ही हारना.. ख़ुदके ही नज़रों में हज़ारों बार गिरना-उठना।
दु:ख के बोझ से दुहरा होना, मंदिरों में भटकना और फ़िर नाकाम होकर शाम को घर लौट आना। क्या ख़ाक ज़िंदगी है जो हर दफ़ा मारने और गिराने में यक़ीन रखती है। एक सबक सिखाने के लिए तिल-तिल किसी ज्वलंत आग में जलाती रहती है। मैं हैरान हूँ ख़ुदसे और ख़ुदा के बनाएँ हुए इस तिलिस्म से.. इस बार तो कसम से।

किसी पर यक़ीन कर चुप बैठ जाना सही नहीं
ये ज़िंदगी कुछ और है ज़ल्द समझ आती नहीं।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa

सर्द चाँदनी रात हवाओं के बीच

सर्द चाँदनी रात हवाओं के बीच
वो इक हसीन सितारा बनकर
तुम मेरे आंगन में
जो उतर जाती हो आहिस्ता
मैं ख़ुदको लिहाफ़ में लपेटकर
अपने पंसदीदा दरीचे पर बैठ
खुली आँखों से एक ख़याल बुनता हूँ
जिसमें दो जवां जिस्म
एक साये में लिपटकर
खंगालते है कंगाल होकर ख़ुदमें
मुहब्बत का इक हसीन सितारा।

नितेश वर्मा

यूं ही एक ख़याल सा - बारिश के ठीक बाद

तुमने बारिश के ठीक बाद क्या कभी उसे देखा है? जब वो झटककर अपनी जुल्फों को हवा में खोल देती हैं और घंटों वो हवाओं से बातें करती हैं। जब उसकी लटें जब उसके कंधों से होकर उसमें एक मासूम सी सरसराहट पैदा करती है तब क्या तुमने उसे देखा है? बारिश में भीगती वो जितनी हसीन लगती है उससे भी ज्यादा खूबसूरत वो ठीक उसके बाद लगती है। जब वो एक बने-बनाए बंधनों से मुक्त होकर धुल जाती है तब वो किसी और ही जहां की परी लगती है।
मैं नहीं जानता वो क्यूं ख़ुदको इन बंधनों से हमेशा से रिहा नहीं करना चाहती। वो क्यूं नहीं किसी बारिश के साथ एकदम से बदलना चाहती। वो क्यूं हर बार घुट-घुटकर फ़िर से उसी जहान में लौट जाना चाहती है जहाँ फ़िर से उसे अपने पाँवों में बेड़ियाँ पहननी होती है। मैं कहाँ कुछ जानता हूँ? मुझे शायद तमीज़ नहीं लेकिन अग़र मैं बदतमीज़ ही हूँ तो मुझे ये फ़र्क़ हमेशा चैन से क्यूं नहीं जीने देती?
क्या हावी हो जाता है उसपर या मुझपर मुझे इसका पता नहीं? क्या मैल छिपा है उसमें या मुझमें मुझे इसका भी कोई पता नहीं। मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ कि वो किसी बारिश के ठीक बाद एक मुहब्बत हो जाती है और मैं उस मुहब्बत में डूब मरता हूँ ख़ुदको सराबोर करके।

नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry #YuHiEkKhyaalSa