ये क्या बंजारन की तरह पसरी हुयी है। ये ले इन पुर्ज़ों में से कोई एक चुन, फ़िर आगे जो कुछ तय करना होगा वो बाद में तय होगा.. अब्बू ने कहा है।
ये सब क्या है?
ये सवाल मेरी होनी चाहिये थी। बहरहाल तू इनमें से कोई एक पुर्ज़ी चुन।
क्यूं?
शादी नहीं करनी है क्या तुझे?
शादी और अभी? अभी तो मैं पढ़ रही हूँ। मैं अभी शादी नहीं करूँगी। तू जा और अब्बू को सब समझा दे।
मैंने समझाया था लेकिन जो ज़वाब सुनकर आयी हूँ ना अग़र बता दूँ तो ज़मीन में शर्म से गड़ जाओगी तुम।
बता दे! मैं नहीं मरी जा रही।
शर्म कर! बदचलन।
क्या?
अब्बू ने कहा था,यार! मैंने जब कहा कि वो अभी कॅालेज जाती है, अभी उसकी उम्र ही क्या है? अभी वो शादी कैसे कर सकती है?
अब्बू ने फिर दो टुक में ज़वाब दे दिया - शादी की उम्र नहीं है और उस आवारा के साथ इश्क़ निभाने की उम्र है। बाइक पर बैठकर राउंड लगाने वाली उम्र की हो गयी है ना। तू जा और बस उसे इनमें से एक चुनने को कह दे। मुझसे मज़ीद बहस ना कर।
तो ले! चुन इनमें से कोई एक।
ले जा! ले जाकर फ़ेंक दे इसे कहीं। मैं किसी को नहीं चुन रही।
देख सुन! तू ना उस हरामी आवाराग़र्द को छोड़। वो ना रनबीर कपूर बनकर मुहल्ले की हर लड़कियों को लिफ्ट कराता रहता है। सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। बात मान और इनमें से कोई एक चुन।
मैं नहीं चुन रही किसी को। तू ही चुन ले तूने तो पहले भी चुन रखा है ना अपने शहजादे को भूलाकर किसी और को। क्या हुआ पड़ गया ना मोटा भैंसा तेरे गले में। अब गले में ले के लटकाती घूम रही है ना, बहुत ख़ुश होगी तू।
यार! लड़कियों का क्या है लड़कियां तो मुतासिर हो ही जाती हैं, इसलिये तो लड़के उन्हें देखने आते हैं, उनसे मुतासिर होते हैं तब जाकर निक़ाह पढ़ाया जाता है।
मैं नहीं मानती ये सब बकवास!
यार! मुझे देख वो मेरा कितना ख़याल रखते है। अग़र मैं उस फटीचर के साथ भाग गयी होती तो क्या होता? गिल्लू को देख! एक औरत के लिये उसकी औलादें ही सबकुछ होती हैं। अग़र आज गिल्लू ख़ुश ना होता.. तो मेरे इश्क़ का क्या मतलब रह जाता।
ख़याल करता होगा लेकिन प्यार नहीं। घर में लाइट्स तो ख़ूब होंगे लेकिन कैंडल लाइट डिनर कभी नहीं हुयी होगी। माना, सर भी दबाता होगा सबसे छिपाकर लेकिन आँख बचाकर चुटियाँ नहीं काटता होगा। वो तुम्हारी परवाह करता होगा लेकिन तुमसे इश्क़ नहीं।
तू चक्करों में फ़ँसी हुयी है मेरी जान! मैं तुझे कैसे समझाऊँ?
तू इसे चक्कर कह कर रही है?
शादी से पहले सब चक्कर ही होता है।
और शादी के बाद?
शादी के बाद.. परिवार, बच्चे, ज़िम्मेदारियाँ।
घुटता इश्क़.. ये भी तो होता है। मुझे पता है तू आज भी ख़ुश नहीं है। दिखावा चाहे तू लाख़ कर। आज भी तू समय बचाकर मुस्तफ़ा भाई को चुपचाप देखने आ जाती है। नज़रे बचाकर देखती है। छत पर जाती है.. निहारती है उन्हें। कपड़े उतारते हुये उनकी उंगलियों को छूना चाहती है और कमबख़्त तब पीछे से आकर गिल्लू का बच्चा तुझे पकड़ लेता है। तू क्या चाहती है? जिस तरह तू जी रही है मैं भी उसी तरह अपनी ज़िंदगी गुजारूँ?
तू फिर भाग जा उसके साथ।
कहाँ तक?
जहाँ तक भाग सकें।
किससे छूटकर भागू तुमसे, अब्बू से, या अम्मी से या भाई से? भागकर कहाँ जाऊँ? उस हरामी ने ऐसे प्यार में फ़ँसाया है कि उसके बिना अब जी भी नहीं सकती। कमीना बीच रस्ते पर मुझे पकड़कर मेरी नक़ाब उतारते हुये कहता है - इतनी ख़राब नाक छिपा रही हो और इतनी खूबसूरत आँखें देख रही है। हाय!
तो मर जा, कमीनी! कमसेकम हमारी जान तो छूटे इस मसलेहत से। हाय! अल्लाह क्या ज़माना आ गया है?
फ़िर वो भी मर जायेगा। मेरे बिना वो भी नहीं जी सकता।
फ़िर तो ठीक है, तुम दोनों मर जाओ। ये मुकम्मल इश्क़ की जगह कहीं और ही है, जाओ मरो अब!
मैनू तेरी नज़र लग जावै ना
अँखियाँ नू.. कौल सतावै ना।
नितेश वर्मा
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