दिल जो ज़ब्त हो जाएं तो समझना तुम
मैं मर जाऊँगा तब मुझे भी देखना तुम।
सारे ग़मों पर पर्दे अपने-आप ही लगेंगे
उन पर्दों के पीछे से बच निकलना तुम।
मैं मान लूंगा ख़ुदसे हर शिकस्त अपनी
हर बार मुझसे इल्तिज़ा ना करना तुम।
ज़ख़्म मेरे बदन पर बरसों से उगती हैं
किसी हमदर्द पर यूं ना फिसलना तुम।
ये हवा भी अजीब सी लगती है हमपर
कोई आग बनकर मुझपर जलना तुम।
ये जो तेरी हसीन सी कायनात है वर्मा
इसी में आख़िर कभी मर बैठना तुम।
नितेश वर्मा और तुम।
#Niteshvermapoetry
मैं मर जाऊँगा तब मुझे भी देखना तुम।
सारे ग़मों पर पर्दे अपने-आप ही लगेंगे
उन पर्दों के पीछे से बच निकलना तुम।
मैं मान लूंगा ख़ुदसे हर शिकस्त अपनी
हर बार मुझसे इल्तिज़ा ना करना तुम।
ज़ख़्म मेरे बदन पर बरसों से उगती हैं
किसी हमदर्द पर यूं ना फिसलना तुम।
ये हवा भी अजीब सी लगती है हमपर
कोई आग बनकर मुझपर जलना तुम।
ये जो तेरी हसीन सी कायनात है वर्मा
इसी में आख़िर कभी मर बैठना तुम।
नितेश वर्मा और तुम।
#Niteshvermapoetry
No comments:
Post a Comment