Tuesday, 15 November 2016

कुछ कहो ना

कुछ कहो ना
कुछ ऐसा कि
मैं लिपट जाऊँ तुमसे
तुम थामों मुझे और
मैं फिसल जाऊँ ख़ुदसे
कुछ कहो ना

कोई किताब खोलकर
ख़्वाबों में मुझे पढ़ो
ख़यालों की चाँदनी रात में
मुझको लिबास कर ओढ़ो
ढ़ूंढों मुझे तुम सिराहने
ख़लाओं में कुछ बात करो
कुछ कहो ना

शायरी करो कभी
कभी रुठ जाओ मुझसे
जुल्फों को बिखराओ कभी
कभी ये सुर्ख़ नाज़ुक होंठ
रख जाओ मुझपर
मुझमें ही रहो ना
कुछ कहो ना

किसी महकी सुब्ह में मिलो
या उदास शाम में आओ
ख़त में मुझे मज़्मून करो
या स्याह में मुझको डुबाओ
किसी पते पर तुम आओ
या इस दिल में रह जाओ
कुछ कहो ना

सितारों से कुछ बात करो
रात कुछ देर छत पर रहो
हज़ारों बातों में पागल है
कुछ इस तरह से घायल है
थोड़ा हसीं मुझमें बहो ना
कुछ तो कहो ना
कुछ कहो ना

गर्म चाय की चुस्कियाँ
सर्दियों की रात में हम
एक लिहाफ़ में अकड़ते
मुहब्बत भरे दो जिस्म
रास्तों को जवां करो
मुझे थोड़ी सी जुबां दो
कुछ कहो ना

कुछ कहो ना
कुछ ऐसा कि
मैं लिपट जाऊँ तुमसे
तुम थामों मुझे और
मैं फिसल जाऊँ ख़ुदसे
कुछ कहो ना।

नितेश वर्मा और कुछ कहो ना।

#Niteshvermapoetry

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