Tuesday, 15 November 2016

यूं ही एक ख़याल सा - बारिश के ठीक बाद

तुमने बारिश के ठीक बाद क्या कभी उसे देखा है? जब वो झटककर अपनी जुल्फों को हवा में खोल देती हैं और घंटों वो हवाओं से बातें करती हैं। जब उसकी लटें जब उसके कंधों से होकर उसमें एक मासूम सी सरसराहट पैदा करती है तब क्या तुमने उसे देखा है? बारिश में भीगती वो जितनी हसीन लगती है उससे भी ज्यादा खूबसूरत वो ठीक उसके बाद लगती है। जब वो एक बने-बनाए बंधनों से मुक्त होकर धुल जाती है तब वो किसी और ही जहां की परी लगती है।
मैं नहीं जानता वो क्यूं ख़ुदको इन बंधनों से हमेशा से रिहा नहीं करना चाहती। वो क्यूं नहीं किसी बारिश के साथ एकदम से बदलना चाहती। वो क्यूं हर बार घुट-घुटकर फ़िर से उसी जहान में लौट जाना चाहती है जहाँ फ़िर से उसे अपने पाँवों में बेड़ियाँ पहननी होती है। मैं कहाँ कुछ जानता हूँ? मुझे शायद तमीज़ नहीं लेकिन अग़र मैं बदतमीज़ ही हूँ तो मुझे ये फ़र्क़ हमेशा चैन से क्यूं नहीं जीने देती?
क्या हावी हो जाता है उसपर या मुझपर मुझे इसका पता नहीं? क्या मैल छिपा है उसमें या मुझमें मुझे इसका भी कोई पता नहीं। मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ कि वो किसी बारिश के ठीक बाद एक मुहब्बत हो जाती है और मैं उस मुहब्बत में डूब मरता हूँ ख़ुदको सराबोर करके।

नितेश वर्मा
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