इतनी उदास थी आँखें उसकी
कि शाम भी बहुत बेचैन रही
दिल कमबख़्त लिपटा रहा
एक सिहरन सीने में क़ैद हुई
कुछ पूंजी जमा थी अमानती
एक चोर चेहरा भी छिपा था
एक दरख़्त था, पुराना सा
जहाँ दो दिल लड़खड़ाएँ थे
कुछ छाले ज़ुबान पर थे
कहीं परिंदे फड़फड़ाएँ थे
सब एक धुँआ सा था.. तब
कहीं हमने लाश जलाएँ थे
वहीं फ़िर आज लौट आया
नम आँखें तो हैं.. लेकिन
वो बेचैनी और वो उदासी
उससे भी कुछ गहरी-गहरी।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
कि शाम भी बहुत बेचैन रही
दिल कमबख़्त लिपटा रहा
एक सिहरन सीने में क़ैद हुई
कुछ पूंजी जमा थी अमानती
एक चोर चेहरा भी छिपा था
एक दरख़्त था, पुराना सा
जहाँ दो दिल लड़खड़ाएँ थे
कुछ छाले ज़ुबान पर थे
कहीं परिंदे फड़फड़ाएँ थे
सब एक धुँआ सा था.. तब
कहीं हमने लाश जलाएँ थे
वहीं फ़िर आज लौट आया
नम आँखें तो हैं.. लेकिन
वो बेचैनी और वो उदासी
उससे भी कुछ गहरी-गहरी।
नितेश वर्मा
#Niteshvermapoetry
No comments:
Post a Comment