Saturday, 18 October 2014

ये जो हैं तुम्हारें अपनें [Ye Jo Hai Tumhare Apne]

ये जो हैं तुम्हारें अपनें
तो अपनें क्यूं नहीं होतें

हर बात पे हैं इतनें रूठें
टूटें आईनें अपनें क्यूं नहीं होतें
दिल तो सबका समुन्दर ही हैं
पर खोटें सिक्कें सपनें क्यूं नहीं होतें
बीत चुका ही हैं वो लम्हा मेरा
खबर ये दिल में क्यूं नहीं होतें
ये जो हैं तुम्हारें अपनें
तो अपनें क्यूं नहीं होतें

वीरानियों में भी तलाशतें हैं जो
मुक्कमल शायर क्यूं नहीं होतें
तुम्हारी आँखों में डूबे चेहरें
रातें यें हमारें क्यूं नहीं होतें
दिल किसी और का टूटें भला
और हम यूं ही कहें
ये दर्द हमें क्यूं नहीं होतें
ये जो हैं तुम्हारें अपनें
तो अपनें क्यूं नहीं होतें

बन बैठें हैं सारें तुम्हारें ही
अखबारों में यें इश्तेहार क्यूं नहीं होतें
बनाया गुलाम तो गुलाम ही सही
मगर मगरुर तुम साथ क्यूं नहीं होतें
जुबां फिर दे के वो पलट गए वर्मा
ये आशिकी सफेद क्यूं नहीं होतें
हर बात में झूठ राजनीति हैं
ये आवाज़ अब चुप क्यूं नहीं होतें
ये जो हैं तुम्हारें अपनें
तो अपनें क्यूं नहीं होतें

नितेश वर्मा


मौसमों का रूख कितना बदल गया हैं

मौसमों का रूख कितना बदल गया हैं
इंसानों का मुख कितना बदल गया हैं
अब कोई रौशनी बची नहीं यहाँ वर्मा
और बेजुबाँ ये दुनिया कितना बदल गया हैं

नितेश वर्मा

कितनी बची हैं [Kitni Bachi Hai]

इन सूखें पत्तों की निशानियाँ कितनी बची हैं
अभ्भी मेरें दिल की कहानियाँ कितनी बची हैं

छोड के चला गया वो इक हमसफर मेरा मुझे
पर इस टूटे दिल की शैतानियाँ कितनी बची हैं

तोड के बंधन वो मेरी ही ख्यालत में रहती हैं
माँ के आँचल में मनमानियाँ कितनी बची हैं

हर इक गम को धो के वो पी लेता हैं इस-कदर
ढूँढता हैं समुन्दर जों उफानियाँ कितनी बची हैं

पत्थर को भी तराश के कीमती हैं बनाया उसनें
हर अवाज़ में खडी ये उँगलियाँ कितनी बची हैं

माँग के उसनें ये दूसरा,तीसरा घर सजा दिया
वर्मा ये तेरे नाम की दीवानियाँ कितनी बची हैं

नितेश वर्मा

Tuesday, 14 October 2014

अपना ना हैं [Apna Na Hai]

मुश्किल में हैं ये जां, मगर अब कुछ कहना ना हैं
तुम ही तुम हो यहाँ, मगर दिल अब अपना ना हैं

ये फिरता हैं अवारा, जो इन तंग गलियों में तेरें
डूबता हैं सहारा, मगर चाँद सयाना अपना ना हैं

कोई भूल गया हैं मुझे, बस इक कहानी मानकर
अब-तक हैं रूठा हाल, मगर बात शायराना ना हैं

तोड के फिर फेंक आएं हैं, दिली परिंदे पर अपनें
लूट लो अब सब तुम, जमाना अब शर्माना ना हैं

इम्तिहान ही दिया वर्मा, तो क्या जीया हैं सबनें
खून-खराबें पे हैं उतरें, मगर कोई जुर्माना ना हैं

नितेश वर्मा

Monday, 13 October 2014

जानें के बाद [Gujar Jane Ke Baad]

वो तो मुकर के ही गया था मुझसे मिलनें के बाद
अब क्यूं आ गया वो फिर गिर के संभलनें के बाद

ज़िंदा हैं आज़ भी वो मेरे दिल में कालें धुएं की तरह
कब-तक मरूगाँ मैं ज़ख्म-ए-दिल भर जानें के बाद

अब तो मौत की तलाश में हैं ये जां मुक्कमल मेरी
हो जायेगा वो मेरा इस ज़िंदगी के गुजर जानें के बाद

उसकी हर मुस्कान दिल के कोनें में कही ठहरी-सी हैं
अब तक नहीं हैं बिखरा चेहरा आईना टूट जानें के बाद

मुझमें रूठा हैं अब तक वो चेहरा तस्वीर का वर्मा
अब तो परिंदें भी लौट आएं दिन गुजर जानें के बाद

नितेश वर्मा

ये तन्हा दिल [Ye Tanha Dil]

मिला जो सुकून अभ्भी रहा यें तन्हा दिल
कैसे कहूं बिन-तेरे, कैसे रहा ये तन्हा दिल

हिसाबों की किताब, ये मंज़िल की परवाह
सताया कुछ ऐसा, रूठा रहा ये तन्हा दिल

झूठ पे झूठ, बस दिल लगा के बैठे हुएं हैं
किनारें आया हैं अब, मेरा ये तन्हा दिल

मालूम थीं मुझे हर-बात हर-रात की तरह
फैसला हुआ कैसा जो टूटा ये तन्हा दिल

लो अब सब मुकर के चलें ही गए होंगें ना
क्यूं हर लाचारी सहता रहा ये तन्हा दिल

नितेश वर्मा

कुछ ऐसा [Kuch Aisa]

हैं इंतजाम कुछ ऐसा, के लगा हर इल्ज़ाम मुझपे कुछ ऐसा
मैं मुहब्बत में हूँ जो लगा, मुझपें चढा हैं ये जाम कुछ ऐसा

अब तो वजह की कोई तालाश नहीं, फिरता ये कबीरा जैसा
टूटा तो था नहीं कभी दिल मेरा, जो बताया नाम कुछ ऐसा

नितेश वर्मा

हैं कई [Hai Kaiy]

के अब मंजिल हैं कई, सितारें हैं कई
भूला हैं आईना और शक्स बैठें हैं कई

तोड आया मैं इक बचा वजूद अपना
कहनें आयें थें जो वो बचे रिश्तें हैं कई

नितेश वर्मा

Nitesh Verma Poetry

..तेरी आँखों का जादू..
..मेरे वादों का कूसूर..
..लूट गए सब अपनें..
..यें हिसाबों का दौर..

..सुकूं भी सिमट के आई हैं..
..लबों पे छाई कैसी ये गहराई हैं..
..तुम..
..बस अब तुम ही इन ख्वाबों में..
..चल रही हैं ये ज़िन्दगी..
..तुम्हारें ही बातों में..

..नितेश वर्मा..

Monday, 6 October 2014

आया मैं [Aaya Main]

जब अदब से पेश होके सबसे आया मैं
लौट फिर इस देश को अपनें आया मैं

इज्जत बची रही इन बेशर्म आँखों की
लूटी थीं जब कायनात तो रो आया मैं

दरिया पार की समुन्दर की प्यास थीं
भूख थीं बडी परिंदो को मार आया मैं

नफरत ही रही थीं ता-उम्र इस जहन में
मरा तो कफ़न संग सब जला आया मैं

बडी चाहत थीं सवारें हम भी इक जाँ
रिश्वत के आगें ये सब गँवा आया मैं

हैं कोई बात ऐसी जो हम बताएँ वर्मा
जब भूले सब तो घर वो भूला आया मैं

नितेश वर्मा

Sunday, 5 October 2014

बारिशों का मौसम [Baarisho Ka Mausam]

लो चलो सही अब इक घर हमारा भी आया
तुम्हारें ही जिद में एक हमारा भी जिद आया

बारिशों की मौसम में की हुई शायरी दिल को उसी बूंद की तरह लगती हैं जैसे हजारों ख्वाहिशें किसी से बरसों के मिलनें पे होती हैं। दीवाना बनाती हुई बारिशों की बूंदें जब-जब हाथ से स्पर्श करती हुई जाती हैं, कोई पुरानी दिल को लगी हुई यादें यूं ही बिन वजह, सीनें में दफन यादें शक्लों का रूप ले के आँखों में छा जाती हैं। अभिव्यक्ति शब्दों के बंधन से परे होती हैं। मुश्किल होता हैं उन लम्हों को बाँध पाना, कुछ कहना व्यर्थ सा लगता हैं। सुकूं दे जानें वाली पल और भी हसीं हो जाती हैं जब शक्लें महबूब का रूप ले लें। आशिकी कभी बंधन, लाज, हयां, शर्म के घेरें में नहीं रही हैं। कोई समाज, जात या सत्ताधारी उनपें अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाएं हैं। प्यार सबसे मुक्त होता हैं, वो दिल के बंधन से होता हैं, जहाँ बस एहसास ही एहसास होते हैं। 

मेरी भी बात दर-असल हमारी बात भी इन्हीं कहीं किसी बातों से शुरू होती हैं। शायद वो बारिश ना होती, वो बेचैंन शाम ना होती, वो मुश्किलात ना होतें तो शायद यें ज़िन्दगी कहीं और होती। आज भी याद हैं मुझे वो बेशर्म आँखें जो मुझपें आके यूं ही बेवजह ठहर जाती थीं। मुझे अपना बना जाती थीं, दिल में कहीं इक ख्वाब या अरमान आप जो भी कहो जगा जाती थीं। दिल ऐसा ही होता हैं, प्यार यूं ही सबको पागल कर जाती हैं। दिल का धडकना और नजरों का मिलना-झुकना ही बस सब कुछ बतानें को काँफी होता हैं। मंजर बहोत सारें गुजरतें हैं इस हयात से लेकिन मुहब्बत इन सबसे दूर, बहोत दूर समझ से परें वाली होती हैं। चाहता था लिखनें से पहलें कहानी बताना मगर अब दिल की वैसी बात नहीं, कुछ बातों से दूरी ही अच्छी लगती हैं। बार-बार उसके बारें में सोचना और फिर उससे मुँह फेर लेना ये आशिकी में ही हो सकता हैं। कौन यूं ही बेवजह बातों के बात करता हैं, कौन एक चेहरें पे ता-उम्र मरता हैं, कौन-कौन ये सब करता हैं। 

सवालों में ही उलझ जातें हैं यकीनन मुहब्बत में लोग मर जातें हैं।
कहतें हैं सब दिल से अपना मुझे मगर मय्यत पे शोर कर जातें हैं॥


Saturday, 4 October 2014

दे जाती हैं [De Jati Hai]

मेरी आवाजों को जो आवाज दे जाती हैं
अपनें होनें का मुझे एहसास दे जाती हैं

मैं बुलाऊँ जो सीनें से तस्वीर लगाकर
वो लबों पे मेरे अपनें लब दे जाती हैं

बहाना ना कोई खता की मैनें इश्क में
वो यूं ही बेवजह सौ शक्लें दे जाती हैं

मना के रक्खा था मैनें जिसे बाहों में
ज़ुल्फ़ों से अपनें वो इक शमां दे जाती हैं

हर मामलें में वो मुझसे बेहतर ही रही
इस तरह छोड के जानें की वजह दे जाती हैं

रोक ना पाया था मैं उसे मुश्किल था सब
तन्हा रात तलें वो एक सपना दे जाती हैं

Thursday, 2 October 2014

पूरी कर दी तुमनें [Puri Kar Di Tumne]

इक ख्वाब मेरी अधूरी पूरी कर दी तुमनें 
चलो रही सारी हिसाब पूरी कर दी तुमनें 

मिल तो जाएं वो सब मेरे अपनें ही कही
यूं ही बेवजह ख्वाहिशें पूरी कर दी तुमनें 

नाम दिल की लिक्खें खतों पे उतरनें लगें
इन बारिशों की हरजुबां पूरी कर दी तुमनें 

वो आवाज कर जाती हैं इन कानों में मेरे
आहिस्ता ही सही रात पूरी कर दी तुमनें 

भला दिल का भी कोई कभी दुश्मन हैं रहा
मेरे इस परेशां को क्यूं पूरी कर दी तुमनें

गींला तो अब बस जमानें से बाकी हैं वर्मा
अधूरी ये ज़िन्दगी यूं ही पूरी कर दी तुमनें 

नितेश वर्मा