Saturday, 18 October 2014

कितनी बची हैं [Kitni Bachi Hai]

इन सूखें पत्तों की निशानियाँ कितनी बची हैं
अभ्भी मेरें दिल की कहानियाँ कितनी बची हैं

छोड के चला गया वो इक हमसफर मेरा मुझे
पर इस टूटे दिल की शैतानियाँ कितनी बची हैं

तोड के बंधन वो मेरी ही ख्यालत में रहती हैं
माँ के आँचल में मनमानियाँ कितनी बची हैं

हर इक गम को धो के वो पी लेता हैं इस-कदर
ढूँढता हैं समुन्दर जों उफानियाँ कितनी बची हैं

पत्थर को भी तराश के कीमती हैं बनाया उसनें
हर अवाज़ में खडी ये उँगलियाँ कितनी बची हैं

माँग के उसनें ये दूसरा,तीसरा घर सजा दिया
वर्मा ये तेरे नाम की दीवानियाँ कितनी बची हैं

नितेश वर्मा

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