Sunday, 5 October 2014

बारिशों का मौसम [Baarisho Ka Mausam]

लो चलो सही अब इक घर हमारा भी आया
तुम्हारें ही जिद में एक हमारा भी जिद आया

बारिशों की मौसम में की हुई शायरी दिल को उसी बूंद की तरह लगती हैं जैसे हजारों ख्वाहिशें किसी से बरसों के मिलनें पे होती हैं। दीवाना बनाती हुई बारिशों की बूंदें जब-जब हाथ से स्पर्श करती हुई जाती हैं, कोई पुरानी दिल को लगी हुई यादें यूं ही बिन वजह, सीनें में दफन यादें शक्लों का रूप ले के आँखों में छा जाती हैं। अभिव्यक्ति शब्दों के बंधन से परे होती हैं। मुश्किल होता हैं उन लम्हों को बाँध पाना, कुछ कहना व्यर्थ सा लगता हैं। सुकूं दे जानें वाली पल और भी हसीं हो जाती हैं जब शक्लें महबूब का रूप ले लें। आशिकी कभी बंधन, लाज, हयां, शर्म के घेरें में नहीं रही हैं। कोई समाज, जात या सत्ताधारी उनपें अपना वर्चस्व स्थापित नहीं कर पाएं हैं। प्यार सबसे मुक्त होता हैं, वो दिल के बंधन से होता हैं, जहाँ बस एहसास ही एहसास होते हैं। 

मेरी भी बात दर-असल हमारी बात भी इन्हीं कहीं किसी बातों से शुरू होती हैं। शायद वो बारिश ना होती, वो बेचैंन शाम ना होती, वो मुश्किलात ना होतें तो शायद यें ज़िन्दगी कहीं और होती। आज भी याद हैं मुझे वो बेशर्म आँखें जो मुझपें आके यूं ही बेवजह ठहर जाती थीं। मुझे अपना बना जाती थीं, दिल में कहीं इक ख्वाब या अरमान आप जो भी कहो जगा जाती थीं। दिल ऐसा ही होता हैं, प्यार यूं ही सबको पागल कर जाती हैं। दिल का धडकना और नजरों का मिलना-झुकना ही बस सब कुछ बतानें को काँफी होता हैं। मंजर बहोत सारें गुजरतें हैं इस हयात से लेकिन मुहब्बत इन सबसे दूर, बहोत दूर समझ से परें वाली होती हैं। चाहता था लिखनें से पहलें कहानी बताना मगर अब दिल की वैसी बात नहीं, कुछ बातों से दूरी ही अच्छी लगती हैं। बार-बार उसके बारें में सोचना और फिर उससे मुँह फेर लेना ये आशिकी में ही हो सकता हैं। कौन यूं ही बेवजह बातों के बात करता हैं, कौन एक चेहरें पे ता-उम्र मरता हैं, कौन-कौन ये सब करता हैं। 

सवालों में ही उलझ जातें हैं यकीनन मुहब्बत में लोग मर जातें हैं।
कहतें हैं सब दिल से अपना मुझे मगर मय्यत पे शोर कर जातें हैं॥


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