Tuesday, 14 October 2014

अपना ना हैं [Apna Na Hai]

मुश्किल में हैं ये जां, मगर अब कुछ कहना ना हैं
तुम ही तुम हो यहाँ, मगर दिल अब अपना ना हैं

ये फिरता हैं अवारा, जो इन तंग गलियों में तेरें
डूबता हैं सहारा, मगर चाँद सयाना अपना ना हैं

कोई भूल गया हैं मुझे, बस इक कहानी मानकर
अब-तक हैं रूठा हाल, मगर बात शायराना ना हैं

तोड के फिर फेंक आएं हैं, दिली परिंदे पर अपनें
लूट लो अब सब तुम, जमाना अब शर्माना ना हैं

इम्तिहान ही दिया वर्मा, तो क्या जीया हैं सबनें
खून-खराबें पे हैं उतरें, मगर कोई जुर्माना ना हैं

नितेश वर्मा

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