Sunday, 1 March 2015

खुदसे मिलनें की कोई तरकीब तो दो

ये याद बनकें ना तुम यूं आया करो
ना बनकें ख्वाब मुझे यूं सताया करो

खुदसे मिलनें की कोई तरकीब तो दो
जालिमों सा होके ना यूं दिखाया करो

मुझमें बसे हो तुम यूं ना-जानें कबसे
अब और ना तुम मुझे आजमाया करो

हर बात तुमसें ही करके लौट आतें हैं
कुछ खातिर मेरें तुम भी दुहराया करो

नितेश वर्मा


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