Wednesday, 11 March 2015

आवाजें कुछ कहनें दे

आवाज़ें कुछ कहनें दे
कब तक रहूँ मैं चुप.. बहनें दे
आवाजें कुछ कहनें दे
इक तू ही आवारा, बेमंज़िल, बेघर
सब रवैय्या ये मुझपे ही रहनें दे
चल हट जा.. मेरी नजरों से दूर
जैसे बादल हो.. मेरी आँखों से दूर
सह ली हैं मैनें.. लिक्खी सारी ये दस्तूर
अब कुछ करनें दे.. उडने दे
आवाजें कुछ कहनें दे
रहनें दे.. मुझे अपना ना कर
मुझे मुझसा मुझपे रहनें दे
आवाजें कुछ कहनें दे

ज़िंदा था मैं बेमतलब लब को कहनें दे
ग़र सोची थीं हर मात तो मरनें दे
मेरे हमसफर मुझे ये दर्द सहनें दे
क्यूं रूठ के लौटूं
इक ख्वाहिश क्यूं सोच के बैठूं
तमन्नाएँ बोझिल तो रस्तें रहनें दे
आवाजें कुछ करती हैं दिल तो करनें दे
मुझे मुझपे रहनें दे
आवाजें कुछ कहनें दे

नितेश वर्मा

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