जल गए वो दिन जो गुजरें थें कभी तेरे छावं
शहर की वो आग, बचा शज़र अब कहीं नहीं
दौडतें-दौडतें दिन गुजरें, बसेरा रात का कहीं
पहचानतें जिस चेहरें को चेहरा अब कहीं नहीं
बडे दूर की ख्वाहिश बडे दूर की हैं तमन्ना
यूहीं तन्हा सफर, नींद बची अब कहीं नहीं
लेकर गुजर गया, वो जो चाहता था मुझसे
परिंदों का था जो बसेरा बचा अब कहीं नहीं
शहर की वो आग, बचा शज़र अब कहीं नहीं
दौडतें-दौडतें दिन गुजरें, बसेरा रात का कहीं
पहचानतें जिस चेहरें को चेहरा अब कहीं नहीं
बडे दूर की ख्वाहिश बडे दूर की हैं तमन्ना
यूहीं तन्हा सफर, नींद बची अब कहीं नहीं
लेकर गुजर गया, वो जो चाहता था मुझसे
परिंदों का था जो बसेरा बचा अब कहीं नहीं
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