Sunday, 15 March 2015

दिल टूटता हैं आदमी संभल जाता हैं

दिल टूटता हैं आदमी संभल जाता हैं
यकीं से पहले आदमी बदल जाता हैं

इक नज़र की मुहब्बत,कितनी हँसी
जीं सोचता नहीं यूहीं मचल जाता हैं

बचातें हर-वक्त वो अपनी बुनियादी
यह कश्मकस और घर जल जाता हैं

और क्या बयान करें गज़लों में वर्मा
ये सब जुबां से यू ही फिसल जाता हैं

नितेश वर्मा

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