Monday, 9 March 2015

थक चूकिं हैं साँसें हमनशीं कहीं और ले चल

मुझे इन मायूसियों से दूर, कहीं और ले चल
थक चूकिं हैं साँसें हमनशीं कहीं और ले चल

उडते ख्वाब है तो वो भी परिंदों के हौसलों से
और ज़माना कहता हैं बातें कहीं और ले चल

नितेश वर्मा और कहीं और ले चल

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