Wednesday, 11 March 2015

यूं ही छेड देता हैं, बैठे अपनी कहानी को वो

यूं ही छेड देता हैं, बैठे अपनी कहानी को वो
क्यूं भला मुझपे रख देता हैं बेईमानी को वो

सताती हैं हर वक्त उसे बस एक ही बात वो
कहता नहीं पर सुनता हैं मेरी जुबानी को वो

मुझसा बननें की उसको बडी आस लगी थीं
अब जो बने, तो रूठें हैं बनके दीवानी को वो

चलो दुआ फरमाएं, तो याद भी हैं आज-तक
हम ना कह रहें बैठें हैं लेके आसमानी को वो

नितेश वर्मा


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