Friday, 27 March 2015

बस यहीं रख-कर ये ज़ाम चलतें हैं हम

कहतें हैं के यूं एहसास लिये चलते हैं हम
दिल में उसके ही नाम लिये चलते हैं हम

मुहब्बत के किताब लिखेंगें हम भी कभी
उसके दीदार में ख्वाब लिये चलते हैं हम

क्यूं बेवजह तुम ये सतातें रहते हो हमें
नजरों से इक इश्तेहार लिये चलते हैं हम

धूप ज़िन्दगी और तुम घना साया मेरा
बस यहीं रख-कर ये ज़ाम चलतें हैं हम

नितेश वर्मा

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