मुझे मेरे ग़म कुछ और दूर ले चल
बहोत तकलीफ़ हैं कही और ले चल
सफर में कौन-कौन सा शहर हुआ हैं
कौन बेगाना,कश्ती कहीं और ले चल
हैं ना ये बात भी कुछ तुम्हारी जैसी
मगरूर हैं और कहती हैं साथ ले चल
तमाम इरादें उसके, कोई तवज्जों दे
हैं रास्तें की पत्थर मगर साथ ले चल
कोई भूल जाता हैं बेगाना इम्तिहां में
अपनें हो तुम, तो मुझे साथ ले चल
मैं टूटता हूँ तो परिंदे घबरा जातें हैं
ये मकानी शज़र कही और ले चल
नितेश वर्मा
बहोत तकलीफ़ हैं कही और ले चल
सफर में कौन-कौन सा शहर हुआ हैं
कौन बेगाना,कश्ती कहीं और ले चल
हैं ना ये बात भी कुछ तुम्हारी जैसी
मगरूर हैं और कहती हैं साथ ले चल
तमाम इरादें उसके, कोई तवज्जों दे
हैं रास्तें की पत्थर मगर साथ ले चल
कोई भूल जाता हैं बेगाना इम्तिहां में
अपनें हो तुम, तो मुझे साथ ले चल
मैं टूटता हूँ तो परिंदे घबरा जातें हैं
ये मकानी शज़र कही और ले चल
नितेश वर्मा
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