Tuesday, 24 February 2015

ये लडकी की ज़िन्दगी कांच ही दुहराती हैं

क्यूं तन्हाईयाँ सिर्फ इतना ही समझाती हैं
किसीका बेरूख होना ये बला ही बताती हैं

मांजती अपनी कुदरतों को वो परेशां सी हैं
ये लडकी की ज़िन्दगी कांच ही दुहराती हैं

नम आँखें, मतलबी ज़ुबां,और बेदर्द शमां
घर का वो कमरा,अभ्भी मुझे ही बुलाती हैं

मेरा ना होना, होनें से बेहतर कहाँ तक हैं
बात ये, माँ के पास में ही समझ आती हैं

चलो अब ये सफर खतम हुआ अए वर्मा
उसके आँखों में बसा शख्स ही दिखाती हैं

नितेश वर्मा

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