Sunday, 22 February 2015

दरियां खुद में समेटे दर्द कितना हैं

दरियां खुद में समेटे दर्द कितना हैं
खूनी खंज़र सीनें में सर्द कितना हैं

जुबां से तहज़ीब सुने तो वो हैंरत हैं
मुझतक ना पहोचें बेदर्द कितना हैं

नितेश वर्मा 

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