दरियां खुद में समेटे दर्द कितना हैं
खूनी खंज़र सीनें में सर्द कितना हैं
जुबां से तहज़ीब सुने तो वो हैंरत हैं
मुझतक ना पहोचें बेदर्द कितना हैं
नितेश वर्मा
खूनी खंज़र सीनें में सर्द कितना हैं
जुबां से तहज़ीब सुने तो वो हैंरत हैं
मुझतक ना पहोचें बेदर्द कितना हैं
नितेश वर्मा
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