Wednesday, 4 February 2015

तो अब क्या मुकम्मल और क्या बर्बाद होना

जो उसने तोड के छोड दिया हैं साथ मेरें होना
तो अब क्या मुकम्मल और क्या बर्बाद होना

समझना-कहना,शिकायतों का चर्चा उसका हैं
बिन मुस्कुराएं जीना और यूं भी तेरा ही होना

नितेश वर्मा

No comments:

Post a Comment