डूब रहें हैं प्यासें और भी न-जानें सिकंदर कितनें
एक तू ही नहीं और भी हैं न-जानें कलंदर कितनें
खरीदतें होगे तुम ही कहीं इन बिकती इमानों को
शहर में यूं ही न-जानें अब घूमतें हैं खंज़र कितनें
इन बहती हवाओं का उम्मीद भी नकारा निकला
चराग़ साथ और परेशान न-जानें ये मंज़र कितनें
क्यूं बदल के रक्खी हैं फितरत इन हुक्मरानों नें
घुस के बैठें हैं सियासत में न-जानें ये बंदर कितनें
नितेश वर्मा
एक तू ही नहीं और भी हैं न-जानें कलंदर कितनें
खरीदतें होगे तुम ही कहीं इन बिकती इमानों को
शहर में यूं ही न-जानें अब घूमतें हैं खंज़र कितनें
इन बहती हवाओं का उम्मीद भी नकारा निकला
चराग़ साथ और परेशान न-जानें ये मंज़र कितनें
क्यूं बदल के रक्खी हैं फितरत इन हुक्मरानों नें
घुस के बैठें हैं सियासत में न-जानें ये बंदर कितनें
नितेश वर्मा
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