Friday, 6 February 2015

ये दिल तो उदास हैं अब कहनें को कहाँ कोई बात हैं


ये दिल तो उदास हैं अब कहनें को कहाँ कोई बात हैं
दर्द सहना हैं तो सहों अपनानें को कहाँ कोई बात हैं

मिलता रहता हैं करके मुझसे वो मुक्कदर के बहानें
मैं यूं बिखर के बैठा हूँ समझनें को कहाँ कोई बात हैं

चलिएं आपकी दो घडी ही सही मौहलत की मिली हैं
बहानें तो ढूँढ लियें मगर करने को कहाँ कोई बात हैं

बेसबर हैं बडे वो यूं मुहब्बत जुबां को समझानें वालें
हैं यूं भागतें और कहतें हैं मरने को कहाँ कोई बात हैं

नितेश वर्मा


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