Monday, 30 March 2015

पहचानतें जिस चेहरें को चेहरा अब कहीं नहीं

जल गए वो दिन जो गुजरें थें कभी तेरे छावं
शहर की वो आग, बचा शज़र अब कहीं नहीं

दौडतें-दौडतें दिन गुजरें, बसेरा रात का कहीं
पहचानतें जिस चेहरें को चेहरा अब कहीं नहीं

बडे दूर की ख्वाहिश बडे दूर की हैं तमन्ना
यूहीं तन्हा सफर, नींद बची अब कहीं नहीं

लेकर गुजर गया, वो जो चाहता था मुझसे
परिंदों का था जो बसेरा बचा अब कहीं नहीं

Friday, 27 March 2015

बस यहीं रख-कर ये ज़ाम चलतें हैं हम

कहतें हैं के यूं एहसास लिये चलते हैं हम
दिल में उसके ही नाम लिये चलते हैं हम

मुहब्बत के किताब लिखेंगें हम भी कभी
उसके दीदार में ख्वाब लिये चलते हैं हम

क्यूं बेवजह तुम ये सतातें रहते हो हमें
नजरों से इक इश्तेहार लिये चलते हैं हम

धूप ज़िन्दगी और तुम घना साया मेरा
बस यहीं रख-कर ये ज़ाम चलतें हैं हम

नितेश वर्मा

Sunday, 22 March 2015

सुकून ढूँढता हैं दिल अब कुछ अच्छा नहीं लगता

सुकून ढूँढता हैं दिल अब कुछ अच्छा नहीं लगता
बातों बातों में करना रात बर्बाद अच्छा नहीं लगता

नितेश वर्मा

महज़ इतनी सी बात और तुमनें तमाशा बना दिया

महज़ इतनी सी बात और तुमनें तमाशा बना दिया
लिक्खूं क्या जज्बात, तुमनें जब दीवाना बना दिया

और भी महोब्बत के बहानें ढूँढ लाऊँगां मैं अए वर्मा
कहतें हैं आज जो सब के मैनें उसे बेगाना बना दिया

नितेश वर्मा

Friday, 20 March 2015

हैं परेशां और भी मुल्क अफवाहों से

बडे दूर से ही तन्हा चले आएं है हम
क्यूं ना उनको ये नज़र आएं है हम

यूं तमाम ख्वाहिशें टूटती हैं हर-पहर
और जा नमाजों में याद आएं हैं हम

मुझसे और भी कुछ उम्मीद बाकी है
उनके आँखों से छुप पढ आएं हैं हम

फितरत क्या हैं कबीरा ये नाम तेरा
सवालें ले जब मुकाम पे आएं है हम

नाराज़ ये ज़िंदगी जुल्फें वो घनी सी
बारिशों में आ-के निखर आएं हैं हम

हैं परेशां और भी मुल्क अफवाहों से
कौन से ज़ागीर लिखवा आएं है हम

नितेश वर्मा और हम

Thursday, 19 March 2015

रूह हो मेरी और मेरा सुकून तुम

इतना चाहता ये तुझे ज़िस्म के जैसे करीब तुम
रूह हो मेरी और मेरा सुकून तुम

तुझसे ही वादे सारें, तेरे ही इरादे सारें
तुझ बिन क्या साँसे मेरी, तुझसे ही बातें मेरी
दिल की मुहब्बत तुम, आँखों के इशारें तुम
बाहों के करीब, हो लबों के किनारें तुम
हो लबों के किनारें तुम..
इतना चाहता ये तुझे ज़िस्म के जैसे करीब तुम
रूह हो मेरी और मेरा सुकून तुम

बारिश की बूंद तुम, धूप की छावं तुम
हल्का नशा हो तुम, हल्की फुहार तुम
कितने दिनों से लगके, यादों से मेरे तुम
हो मेरी खुमार तुम, ख्वाबों की रात तुम
तू ही जहां और हो मेरी जान तुम
हो मेरी जान तुम..
इतना चाहता ये तुझे ज़िस्म के जैसे करीब तुम
रूह हो मेरी और मेरा सुकून तुम

इतना चाहता ये तुझे ज़िस्म के जैसे करीब तुम
रूह हो मेरी और मेरा सुकून तुम

नितेश वर्मा


Tuesday, 17 March 2015

तुझको मेरा दिल ऐसे अपनाएं क्यूं

तुझको मेरा दिल ऐसे अपनाएं क्यूं
ना तुझको चाहें, तो तुझे बताएं क्यूं

किसी और के खातिर, जताता रहा
ये तुझपे यूंहीं अपना दिल हराएं क्यूं

आँखों की मुहब्बत, ये दिल की हयां
न चाहें फिर भी मुझसे शरमाएं क्यूं

उसकी नजरें हर-वक्त मुझसे लगी
यही हैं मुहब्बत, मुझे समझाएं क्यूं

दौडता फिरता हैं, सदियों-सदियों से
मिला हैं जो अब तो मुझे रूलाएं क्यूं

भरम और भी हैं यहां, भूल जानें को
मग़र दिल में है आईना भूलाएं क्यूं

नितेश वर्मा

Sunday, 15 March 2015

दिल टूटता हैं आदमी संभल जाता हैं

दिल टूटता हैं आदमी संभल जाता हैं
यकीं से पहले आदमी बदल जाता हैं

इक नज़र की मुहब्बत,कितनी हँसी
जीं सोचता नहीं यूहीं मचल जाता हैं

बचातें हर-वक्त वो अपनी बुनियादी
यह कश्मकस और घर जल जाता हैं

और क्या बयान करें गज़लों में वर्मा
ये सब जुबां से यू ही फिसल जाता हैं

नितेश वर्मा

Wednesday, 11 March 2015

यूं ही छेड देता हैं, बैठे अपनी कहानी को वो

यूं ही छेड देता हैं, बैठे अपनी कहानी को वो
क्यूं भला मुझपे रख देता हैं बेईमानी को वो

सताती हैं हर वक्त उसे बस एक ही बात वो
कहता नहीं पर सुनता हैं मेरी जुबानी को वो

मुझसा बननें की उसको बडी आस लगी थीं
अब जो बने, तो रूठें हैं बनके दीवानी को वो

चलो दुआ फरमाएं, तो याद भी हैं आज-तक
हम ना कह रहें बैठें हैं लेके आसमानी को वो

नितेश वर्मा


आवाजें कुछ कहनें दे

आवाज़ें कुछ कहनें दे
कब तक रहूँ मैं चुप.. बहनें दे
आवाजें कुछ कहनें दे
इक तू ही आवारा, बेमंज़िल, बेघर
सब रवैय्या ये मुझपे ही रहनें दे
चल हट जा.. मेरी नजरों से दूर
जैसे बादल हो.. मेरी आँखों से दूर
सह ली हैं मैनें.. लिक्खी सारी ये दस्तूर
अब कुछ करनें दे.. उडने दे
आवाजें कुछ कहनें दे
रहनें दे.. मुझे अपना ना कर
मुझे मुझसा मुझपे रहनें दे
आवाजें कुछ कहनें दे

ज़िंदा था मैं बेमतलब लब को कहनें दे
ग़र सोची थीं हर मात तो मरनें दे
मेरे हमसफर मुझे ये दर्द सहनें दे
क्यूं रूठ के लौटूं
इक ख्वाहिश क्यूं सोच के बैठूं
तमन्नाएँ बोझिल तो रस्तें रहनें दे
आवाजें कुछ करती हैं दिल तो करनें दे
मुझे मुझपे रहनें दे
आवाजें कुछ कहनें दे

नितेश वर्मा

Monday, 9 March 2015

थक चूकिं हैं साँसें हमनशीं कहीं और ले चल

मुझे इन मायूसियों से दूर, कहीं और ले चल
थक चूकिं हैं साँसें हमनशीं कहीं और ले चल

उडते ख्वाब है तो वो भी परिंदों के हौसलों से
और ज़माना कहता हैं बातें कहीं और ले चल

नितेश वर्मा और कहीं और ले चल

Saturday, 7 March 2015

के बुझ गयी हैं साँसें अब कोई शोर ना करेंगें हम

के बुझ गयी हैं साँसें अब कोई शोर ना करेंगें हम
तुम सवालें ना करों अब कोई जोर ना करेंगे हम

के दिन गुजरतें चलें आयें थें तुम्हारें ज़ुल्फों तलें
रहनें दो मुहब्बत अब कोई बरसात ना करेंगे हम

नितेश वर्मा


Tuesday, 3 March 2015

चलो इस बदलतें दौर में ये भी देख आयें

चलो इस बदलतें दौर में ये भी देख आयें
अपनें घर में हम भी थें मेहमां देख आयें

खून रिश्तों का या रिश्तें खून के थें अपनें
बडें परेशां थें इससे हम सबको बेक आयें

मौला तुम अबसे इतना अता करना मुझे
दौलत से कभी खुदको ना हम बेच आयें

सुना था वो सियासी मामला था शहर में
न-जानें अपनें सारें कैसे उस ज़द में आयें

नितेश वर्मा

Monday, 2 March 2015

चलतें हुएं कदम रूक से गये हैं

चलतें हुएं कदम रूक से गये हैं
हम इस भीड में छुप से गये हैं

नहीं चाहतें हैं हम बताएं सबको
वो मिज़ाजे-बात बदल से गये हैं

ज़िंदगी नें कुछ कम ना किया हैं
क्यूं बताएं के क्यूं रूठ से गये हैं

वो ख्याल-ए-तमन्ना वो रातों का
हर-पहर वो मुझमें डूब से गये हैं

थीं ठहराव कहीं दुश्मनें जात जानें
हम सामाजी-बात बिखर से गये हैं

कोई हर्जाना भर के रिहा हुआ हैं
और ता-उम्र होके हम कैद से गये हैं

नितेश वर्मा


Sunday, 1 March 2015

खुदसे मिलनें की कोई तरकीब तो दो

ये याद बनकें ना तुम यूं आया करो
ना बनकें ख्वाब मुझे यूं सताया करो

खुदसे मिलनें की कोई तरकीब तो दो
जालिमों सा होके ना यूं दिखाया करो

मुझमें बसे हो तुम यूं ना-जानें कबसे
अब और ना तुम मुझे आजमाया करो

हर बात तुमसें ही करके लौट आतें हैं
कुछ खातिर मेरें तुम भी दुहराया करो

नितेश वर्मा


मैं टूटता हूँ तो परिंदे घबरा जातें हैं

मुझे मेरे ग़म कुछ और दूर ले चल
बहोत तकलीफ़ हैं कही और ले चल

सफर में कौन-कौन सा शहर हुआ हैं
कौन बेगाना,कश्ती कहीं और ले चल

हैं ना ये बात भी कुछ तुम्हारी जैसी
मगरूर हैं और कहती हैं साथ ले चल

तमाम इरादें उसके, कोई तवज्जों दे
हैं रास्तें की पत्थर मगर साथ ले चल

कोई भूल जाता हैं बेगाना इम्तिहां में
अपनें हो तुम, तो मुझे साथ ले चल

मैं टूटता हूँ तो परिंदे घबरा जातें हैं
ये मकानी शज़र कही और ले चल

नितेश वर्मा