Tuesday, 24 February 2015

ये लडकी की ज़िन्दगी कांच ही दुहराती हैं

क्यूं तन्हाईयाँ सिर्फ इतना ही समझाती हैं
किसीका बेरूख होना ये बला ही बताती हैं

मांजती अपनी कुदरतों को वो परेशां सी हैं
ये लडकी की ज़िन्दगी कांच ही दुहराती हैं

नम आँखें, मतलबी ज़ुबां,और बेदर्द शमां
घर का वो कमरा,अभ्भी मुझे ही बुलाती हैं

मेरा ना होना, होनें से बेहतर कहाँ तक हैं
बात ये, माँ के पास में ही समझ आती हैं

चलो अब ये सफर खतम हुआ अए वर्मा
उसके आँखों में बसा शख्स ही दिखाती हैं

नितेश वर्मा

Sunday, 22 February 2015

दरियां खुद में समेटे दर्द कितना हैं

दरियां खुद में समेटे दर्द कितना हैं
खूनी खंज़र सीनें में सर्द कितना हैं

जुबां से तहज़ीब सुने तो वो हैंरत हैं
मुझतक ना पहोचें बेदर्द कितना हैं

नितेश वर्मा 

Friday, 20 February 2015

एक तुम ही नहीं और भी हैं वर्मा

एक तुम ही नहीं और भी हैं वर्मा
रंग बदलतें चेहरें और भी हैं वर्मा

बस इतना-सा ख्याल रक्खा करो
दुश्मनी तो उनकी और भी हैं वर्मा

अंज़ान-इरादें,मकसदें अजनबी हैं
नज़र आतें अपनें और भी हैं वर्मा

क्यूं इतनी बेरूखी ओढ रक्खी हैं
नाराज़ शख्स तो और भी हैं वर्मा

नितेश वर्मा


Thursday, 19 February 2015

तेरे नाम रहता हैं

क्यूं तन्हा दिल ये खुद में यूं बदनाम रहता हैं
जो भी हो अंज़ाम उसका सब सरेआम रहता हैं

उदास होनें के और भी नजानें कितनें हैं बहानें
मग़र ये अंज़ाम इल्ज़ाम बस तेरे नाम रहता हैं

नितेश वर्मा
और
तेरे नाम रहता हैं

Tuesday, 17 February 2015

नफरत मग़र तुमसे हो अच्छा नहीं लगता

कोई रौशनी-सी कर दो इस कमरे में,
हो ग़र दिलें बेचैंन तो अच्छा नहीं लगता

तुमसे कोई उम्मीद का था मैं कहाँ,
नफरत मग़र तुमसे हो अच्छा नहीं लगता

नितेश वर्मा

गुस्ताख बर्बाद कर देती हैं

इक उम्र से कैद आवाज
दस्तखें आज तक देती हैं

मुझमें हैं जिंदा इक जां
गुस्ताख बर्बाद कर देती हैं

नितेश वर्मा

Friday, 13 February 2015

Nitesh Verma Poetry And We Love Emraan Hashmi

क्या चाहेंगे कुछ और हम
रहें ना तुमसे यूं दूर हम

बस जाएं धडकनों से साँसों में
इल्तिज़ा बस यहीं और हम

कह ले ज़माना कुछ और भी
यूं ही करेंगे ये चर्चें और हम

अब तो जुदा जां से हो
ता-उम्र कहेंगे ना कुछ और हम

We Love Emraan Hashmi
यहीं करेंगे सब फैन शोर हम

मुल्कएअमीर और लोग फकीर हैं

इस शहर की बात भी कुछ और हैं
मुल्कएअमीर और लोग फकीर हैं

मौहलत नहीं यहाँ चंद साँसों को
यहाँ के लोग फितरत से ग़रीब हैं

नितेश वर्मा

बहोत बेचैंन मग़र वो मुझसा हैं

बहोत बेचैंन मग़र वो मुझसा हैं
ईश्केमरीज़ मग़र वो मुझसा हैं

टूट के कब का वो बिखरा हुआ
जो भी हो मग़र वो मुझसा हैं

नितेश वर्मा

Nitesh Verma Poetry

रातें अब बेजान सी हो चली हैं.. कुछ कसक सी हैं सीनें में कही.. कौन चाहता हैं.. यूं ही दर्द-बेदर्द का आलम सहतें रहें.. कौन चाहता हैं बातें फिर से करें.. कहानियाँ किताब के पन्नों में ही सही लगती हैं..

दिल उदास हो तो जुबां से भी खरास ही निकलती हैं.. तल्खियाँ, कडवाहटें घर ले लेती हैं.. इंसान बस मजबूर-सा लगता हैं.. यहीं आलम हैं की बातें भी उसकी कुछ को ही समझ में आती हैं या पसंद

अब तो यूं बस मैं मुन्तजिर बैठा हूँ
ख्वाब में वो अब अच्छी नहीं लगती

नितेश वर्मा

Wednesday, 11 February 2015

चाहतें हैं के करें अपना तुझे

मंज़िल से बहोत दूर हैं हम
जानें कितनें मजबूर हैं हम

चाहतें हैं के करें अपना तुझे
मग़र नहीं वो दस्तूर हैं हम

फितरत बदल रहीं हैं उसकी
और सपनें से चकनाचूर हैं हम

जीयें भी तो किसकी खातिर
मग़र हुएं भी मशहूर हैं हम

नितेश वर्मा


अपनें ही घर में नजानें कितनें पहरें हैं यहाँ

जानतें-पहचानतें नजानें कितनें चेहरें हैं यहाँ
अपनें ही घर में नजानें कितनें पहरें हैं यहाँ

कोई क्यूं भला दर्द के दराजों से हैं झांकता
मुकद्दर को लियें नजानें कितनें नखरें हैं यहाँ

नितेश वर्मा

Sunday, 8 February 2015

खरीदतें होगे तुम ही कहीं इन बिकती इमानों को

डूब रहें हैं प्यासें और भी न-जानें सिकंदर कितनें
एक तू ही नहीं और भी हैं न-जानें कलंदर कितनें

खरीदतें होगे तुम ही कहीं इन बिकती इमानों को
शहर में यूं ही न-जानें अब घूमतें हैं खंज़र कितनें

इन बहती हवाओं का उम्मीद भी नकारा निकला
चराग़ साथ और परेशान न-जानें ये मंज़र कितनें

क्यूं बदल के रक्खी हैं फितरत इन हुक्मरानों नें
घुस के बैठें हैं सियासत में न-जानें ये बंदर कितनें

नितेश वर्मा


Saturday, 7 February 2015

तोडती हैं लब्ज़ उनकी ये दौडती नब्ज़ मेरी

यूं तो अभ्भी हम उस नजर से बे-नजर से हैं
नजानें, वो कितनें हमसे अभ्भी बेखबर से हैं

करती हैं बेचैनियाँ नजानें कैसी सवालें हमसे
वो सब समझ के, अभ्भी कितनें बेसबर से हैं

इतना सा भी उसे यकीं नहीं मेरी बयानों का
और कहतें हैं अभ्भी, ये जां तेरे फिकर से हैं

तोडती हैं लब्ज़ उनकी ये दौडती नब्ज़ मेरी
उनके ख्यालों में डूबें, कितने दर-बदर से हैं

नितेश वर्मा


Friday, 6 February 2015

ये दिल तो उदास हैं अब कहनें को कहाँ कोई बात हैं


ये दिल तो उदास हैं अब कहनें को कहाँ कोई बात हैं
दर्द सहना हैं तो सहों अपनानें को कहाँ कोई बात हैं

मिलता रहता हैं करके मुझसे वो मुक्कदर के बहानें
मैं यूं बिखर के बैठा हूँ समझनें को कहाँ कोई बात हैं

चलिएं आपकी दो घडी ही सही मौहलत की मिली हैं
बहानें तो ढूँढ लियें मगर करने को कहाँ कोई बात हैं

बेसबर हैं बडे वो यूं मुहब्बत जुबां को समझानें वालें
हैं यूं भागतें और कहतें हैं मरने को कहाँ कोई बात हैं

नितेश वर्मा


Thursday, 5 February 2015

कौन ताश की बाजी में जीतता हैं

कौन ताश की बाजी में जीतता हैं
जीतता सर भी तो वही गिरता हैं

खेलता हैं ना-जानें खेल कैसा वो
बाजीयाँ पलट के बोल बोलता हैं

बहोतों मुश्क्कत मगर जी रहा हैं
मरना भी ग़रीबी उसे दिखाता हैं

कहिए तो हम भी खामोश रहेगें
सच कितनी कडवी जी दुखता हैं

नितेश वर्मा

Wednesday, 4 February 2015

के जो ये मुहब्बत पढे भी तो किसकी आँखों में

के जो ये मुहब्बत पढे भी तो किसकी आँखों में
अपना कोई हैं ही नहीं तो रहें किसकी आँखों में

कितनी मुश्किलों से भूलाया था उसकी यादों को
पल-पल मर रही हैं बेकसूर ये जिसकी आँखों में

चाहत तो बस इतनी-सी थीं की वो मुकम्मल रहें
आज़ादी नहीं हैं ढूँढती खौफ हैं जिसकी आँखों में

ये माना के चंद लम्हात की ही की थीं गुजारिशें
मग़र अब मौहलत कहाँ जो रहें उसकी आँखों में

क्यूं तन्हा-तन्हा सा रहता हैं ये उदास दिल मेरा
और पूछता हैं पल रहीं हैं क्या उसकी आँखों में

नितेश वर्मा


तो अब क्या मुकम्मल और क्या बर्बाद होना

जो उसने तोड के छोड दिया हैं साथ मेरें होना
तो अब क्या मुकम्मल और क्या बर्बाद होना

समझना-कहना,शिकायतों का चर्चा उसका हैं
बिन मुस्कुराएं जीना और यूं भी तेरा ही होना

नितेश वर्मा

Sunday, 1 February 2015

हो गया हैं शायद कहीं वो उदास मुझसे

हो गया हैं शायद कहीं वो उदास मुझसे
पूछों न अब कोई बेमतलब खास मुझसे

मरे मेरे हुनर को अब ना समझनें वालें
हैं गर जो तो सामनें रखों भडास मुझसे

पत्थर दिल वो संग-मरमर सा लगता हैं
पूछता रहता हैं ना-जानें बकवास मुझसे

कोई कानूनी किताब उसने पकड रखी हैं
सर करके लाखों जुर्म के तो लाश मुझसे

नितेश वर्मा