Thursday, 30 April 2015

क्यूं कोई यकीन करें किसीके कहानी पर

क्यूं कोई यकीन करें किसीके कहानी पर
सबनें तो वही हर्फ लिक्खा हैं दीवानी पर

समझनें को हर हाल हैं वो समझ सकता
न-जानें क्यूं बैठा हैं यूं लगके शैतानी पर

नितेश वर्मा

कौन समझा के मना के लाएं उसको

कौन समझा के मना के लाएं उसको
सर ये बे-मतलब कौन चढाएं उसको

थक चुकी हैं आँखें यूहीं तरसतें प्यासें
हर वक्त कौन अब ये समझाएं उसको

इक ख्वाहिश थीं जो अब मरी सी हैं
थीं समुन्दर चाहत कौन बुझाएं उसको

लौट के फिर घर आनें को तैयार हैं
अब वो बात नहीं कौन दुहराएं उसको

नितेश वर्मा

Wednesday, 29 April 2015

Nitesh Verma Poetry

आज उँगलियों पे गलतियाँ गिना के चला गया
जो कभी मुझमें ज़िन्दगी को निभानें आया था

नितेश वर्मा

जब तक आप अपने काम के प्रति गंभीर नहीं होते..
सब आपका और आपके काम का मज़ाक बनाऐंगे।

नितेश वर्मा

उससे बस इतना कहना रह गया
ये दिल का रोना अलग रह गया ।

नितेश वर्मा

इस तरह और भी कई ख्वाब खूबसूरत होंगे
अभी तो हाथों में उसनें बस यूं हाथ रक्खा हैं

नितेश वर्मा

कोई और ले जाता हैं मेरी ख्वाहिशें चुराकर
मैंने न-जाने सज़दे में क्या-क्या माँग रखा है ।

नितेश वर्मा


उसे लगता हैं इन खामोशियों से चल रही हैं ज़िन्दगी

उसे लगता हैं इन खामोशियों से चल रही हैं ज़िन्दगी
मैनें बहोत संभाला फिर भी खर्च हो रही हैं ज़िन्दगी ।

वो इंकारमुकर कर मुझसे यूं ही चली गयी हैं कही तो
उससे दूर निकलकर उसमें ही गुजर रही हैं ज़िन्दगी ।

शैतानियाँ और भी बनाता हैं तस्वीर-ए-ख्यालें बहोत
क्यूं यूं ही ये बेजुबां होकर मुझे सता रही हैं ज़िन्दगी ।

नितेश वर्मा

कोई अब ये मजहबी किताब जला तो दे

अब कोई हवा आकर इसे बुझा तो दे
थक चुकी है बहोत या कोई दुआ तो दे

शाम की हवाओं का ही असर रहा होगा
कोई यूं दुपट्टा लहरा के उसे भूला तो दे

अब सुख कहीं इसे मयस्सर नहीं होता
जिंदगी को उनसे अब कोई मिला तो दे

हर शाम तस्वीर ही तस्वीर बदल रही हैं
कोई अब ये मजहबी किताब जला तो दे

नितेश वर्मा

गुनाह हो गया कुछ ऐसा मुझसे

गुनाह हो गया कुछ ऐसा मुझसे
दिल मेरा ये जुदा हो गया मुझसे

उसने ना समझा सब उससे था
क्यूं हुआ वो यूं ही खफा मुझसे

हाल कुछ ऐसा है यूं दीवारों का
सिलवटें कई हो बारहबां मुझसे

नितेश वर्मा

दिल पे क्यूं हाथ रख दी उसनें

दिल पे क्यूं हाथ रख दी उसनें
साँसों को हल्कें क्यूं दबा दिया

तो वो शक्स मुझसे अच्छा था
खामोश दिल जो यूं लूटा दिया

उसनें फिर से कोई शरारत की
सर पे जुनूं कहीं और चढा दिया

मैनें तो यूहीं खौफ बना रखा था
वर्मा खून तो उसने करा दिया

नितेश वर्मा

Monday, 20 April 2015

सुकून से लम्हा दो लम्हा गुजार लेते हैं

सुकून से लम्हा दो लम्हा गुजार लेते हैं
जो लोग अपनी गलतियाँ सुधार लेते हैं

उडतें हुएं यूं मकाम को हासिल करते हैं
जो लोग अपनी हथकडियाँ उतार लेते हैं

बडे बेचैंन से मन के बेमन से हुएं रहते हैं
जो लोग किसीकी ज़िंदगीयाँ उज़ाड लेते हैं

यूं तो नफरत का हिसाब-किताब करते हैं
जो लोग दो-एक पहेलियाँ यूं सवारं लेते हैं

नितेश वर्मा

Sunday, 19 April 2015

मैं नहीं प्यासा क्यूं सराब करते हो तुम

क्यूं हर रात को यूं ख्वाब करते हो तुम
इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम

मुझमें और भी दरियां कोई समुन्दर हैं
मैं नहीं प्यासा क्यूं सराब करते हो तुम

ज़िंदा हैं ग़र मुझमें तेरा वजूद ऐ करम
तो क्यूं महफिल में शराब करते हो तुम

अलग करके यूं रख दी हैं जुबान हमारी
अब हिन्दी नहीं तो यूं उर्दू करते हो तुम

नितेश वर्मा

किस्मत से ज्यादा ना मिला मुझे

इस उम्मीद से जी रहे हैं सब
मरनें का अब इन्हें खौफ नहीं।

नितेश वर्मा

बहोत जोर लगा के देख लिया
किस्मत से ज्यादा ना मिला मुझे।

नितेश वर्मा

अब डर लगता हैं मुझे

अब डर लगता हैं मुझे
तुमसे कुछ कहना तो
कुछ छुपाना पडता हैं मुझे

यकीनन
हर बार मुकरना पडता हैं मुझे
दिल की गहराई में
हैं जो समाई बात
जुबां पे रखना पडता हैं मुझे
अब डर लगता हैं मुझे

साँसों को नींद की करवट में
धडकनों को आहिस्ता से
यूं हौलें से
जिंदा रहना पडता हैं मुझे
कुछ समेटना
तो कुछ छोडना पडता हैं मुझे
अपनों के साथ
ऐसा जीना पडता हैं मुझे
अब डर लगता हैं मुझे

सुबह की ओंस में
सांझ की रोस में
ऐसे ही कभी जलना
तो कभी बुझना पडता हैं मुझे
कभी सौ मील पैदल
तो कभी मंज़िल घर की
हर ओर वक्त पे चलना पडता हैं मुझे

उसके वादों से उसके बातों से
उसके ख्यालों से कैसे हो कोई जुदा
हमदर्द
उस दर्द को सहना पडता हैं मुझे
अब डर लगता हैं मुझे
अब डर लगता हैं मुझे

नितेश वर्मा

Tuesday, 14 April 2015

शैतानियाँ दुहरानें को आ

शैतानियाँ दुहरानें को आ
मुझे मुझसे मिलानें को आ
साँसें बिन तेरे तन्हा हैं
फिर से मुझे गले लगानें को आ

हर-वक्त ज़िंदा मुझमें तू हैं
किसी बहानें ये समझानें को आ
सफर में ऐसे ही कैसे चलेगा
दो कदम तो साथ निभानें को आ
मुझमें तस्वीर तेरा तस्व्वुर हैं
मेरे इन ख्वाब को सजानें को आ
आ फिर से सब ये दुहरानें को आ
फिर से मुझे गले लगानें को आ

थक चुका हूँ बहोत मैं यूं
निगाहों से ही कुछ पिलानें को आ
क्यूं कैसी और क्या हैं तेरी मजबूरी
कब तक रहूँ यूहीं यही बतानें को आ
कुछ और करीब आनें को आ
मेरें सीनें में अब समानें को आ

शैतानियाँ दुहरानें को आ
मुझे मुझसे मिलानें को आ

नितेश वर्मा

Monday, 13 April 2015

इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम

क्यूं हर रात को यूं ख्वाब करते हो तुम
इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम

मुझमें और भी दरियां कोई समुन्दर हैं
मैं नहीं प्यासा क्यूं सराब करते हो तुम

ज़िंदा हैं ग़र मुझमें तेरा वजूद ऐ करम
तो क्यूं महफिल में शराब करते हो तुम

अलग करके यूं रख दी हैं जुबान हमारी
अब हिन्दी नहीं तो यूं उर्दू करते हो तुम  [काफिये की कमी]

नितेश वर्मा

Saturday, 11 April 2015

लोग गुजरें, मेरें गुजरें वक्त का दाम पूछ्ते हैं

तो क्या हुआ था हाल वो मेरा अंज़ाम पूछते हैं
लोग गुजरें, मेरें गुजरें वक्त का दाम पूछ्ते हैं

उँगलियों पे वो जो यूं शर्तें गिनानें वाले हैं लोग
जो लिये मेरा हुस्नें बाजार तुम्हें ज़ाम पूछते हैं

नितेश वर्मा 

Thursday, 9 April 2015

इस तरह और भी कुछ पूछना बाकी हैं

इस तरह और भी कुछ पूछना बाकी हैं
कब तक रहोगे दूर कितना रूठना बाकी हैं

तुम्हारें लबों की हसरत हैं बडी मुझमें
इस तरह और यूं कितना गुजरना बाकी हैं

हर आहट के पीछें तुम्हारी ही निशां हैं
इस तरह और ये कितना मचलना बाकी हैं

कोई साथी साथ हैं किस तरह मुझमें
इस तरह और जो कितना संभलना बाकी हैं

मिलता हैं जो कभी उम्मीद से ज्यादा
इस तरह और यूं कितना धडकना बाकी हैं

नितेश वर्मा

Tuesday, 7 April 2015

Nitesh Verma Poetry

[1] इस दौर का हिसाब कुछ और हैं
कहीं और ले चल जहां तो और हैं

[2] मेरे उँगलियों पे गलतियाँ गिनानें वालें
बस करों ये ज़ुमलें ज़िन्दगी कुछ और हैं

[3] दिल दुखा दी हैं तुमनें कहीं और नज़र नहीं आतें तुम
क्या मज़ाक बना रक्खा हैं मुझें समझ नहीं आतें तुम

नितेश वर्मा

Nitesh Verma Poetry

सुबह बहकर जो हवा चली गयी थीं
शाम तुम्हारें नाम से फिर याद आ गयी

बहोत ही खूबसूरत एहसास बतानें को हैं
ये दिल फिर से तेरा नाम गुनगुनानें को हैं

नितेश वर्मा और बिन मूड शायरी 

आ फिर मुझे पुकार दिल मेरा तन्हा हैं

हर ख्याल बीतता मुझमें तेरा लम्हा हैं
आ फिर मुझे पुकार दिल मेरा तन्हा हैं
करवटें लेता हैं सायां तेरा मुझमें बेमन
ज़िंदा सा वो इक ज़ख्म मग़र मन्हा हैं
हर वारदात मेरे नाम से जारी करनें हैं
अब कौन ये बताएं के उपर सब जम्हा हैं
वो तो हथेलियाँ थाम के खुश हो रहा हैं
ज़िन्दगी के जुमलों से कही दूर रम्हा हैं
नितेश वर्मा

Saturday, 4 April 2015

दूर की दूरी ही अच्छी हैं

हैं कोई ये बतानें वाला
ज़ुर्म मेरा मुझे गिनानें वाला

चेहरें तो बहोत मिलते हैं
कोई हैं मुझे सजानें वाला

पूछता हर-वक्त हादसे वो
मग़र नहीं वो मुझे छुपानें वाला

ग़म की सौ आँधियां चली
कौन यहाँ मुझे रिंझानें वाला

बैठता हर-वक्त सजदें में
नहीं वो मुझे अपनानें वाला

दूर की दूरी ही अच्छी हैं
दिल को कौन ये समझानें वाला

नितेश वर्मा