अब कोई हवा आकर इसे बुझा तो दे
थक चुकी है बहोत या कोई दुआ तो दे
शाम की हवाओं का ही असर रहा होगा
कोई यूं दुपट्टा लहरा के उसे भूला तो दे
अब सुख कहीं इसे मयस्सर नहीं होता
जिंदगी को उनसे अब कोई मिला तो दे
हर शाम तस्वीर ही तस्वीर बदल रही हैं
कोई अब ये मजहबी किताब जला तो दे
नितेश वर्मा
थक चुकी है बहोत या कोई दुआ तो दे
शाम की हवाओं का ही असर रहा होगा
कोई यूं दुपट्टा लहरा के उसे भूला तो दे
अब सुख कहीं इसे मयस्सर नहीं होता
जिंदगी को उनसे अब कोई मिला तो दे
हर शाम तस्वीर ही तस्वीर बदल रही हैं
कोई अब ये मजहबी किताब जला तो दे
नितेश वर्मा
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