क्यूं हर रात को यूं ख्वाब करते हो तुम
इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम
मुझमें और भी दरियां कोई समुन्दर हैं
मैं नहीं प्यासा क्यूं सराब करते हो तुम
ज़िंदा हैं ग़र मुझमें तेरा वजूद ऐ करम
तो क्यूं महफिल में शराब करते हो तुम
अलग करके यूं रख दी हैं जुबान हमारी
अब हिन्दी नहीं तो यूं उर्दू करते हो तुम
नितेश वर्मा
इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम
मुझमें और भी दरियां कोई समुन्दर हैं
मैं नहीं प्यासा क्यूं सराब करते हो तुम
ज़िंदा हैं ग़र मुझमें तेरा वजूद ऐ करम
तो क्यूं महफिल में शराब करते हो तुम
अलग करके यूं रख दी हैं जुबान हमारी
अब हिन्दी नहीं तो यूं उर्दू करते हो तुम
नितेश वर्मा
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