Tuesday, 7 April 2015

Nitesh Verma Poetry

[1] इस दौर का हिसाब कुछ और हैं
कहीं और ले चल जहां तो और हैं

[2] मेरे उँगलियों पे गलतियाँ गिनानें वालें
बस करों ये ज़ुमलें ज़िन्दगी कुछ और हैं

[3] दिल दुखा दी हैं तुमनें कहीं और नज़र नहीं आतें तुम
क्या मज़ाक बना रक्खा हैं मुझें समझ नहीं आतें तुम

नितेश वर्मा

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