कौन समझा के मना के लाएं उसको
सर ये बे-मतलब कौन चढाएं उसको
थक चुकी हैं आँखें यूहीं तरसतें प्यासें
हर वक्त कौन अब ये समझाएं उसको
इक ख्वाहिश थीं जो अब मरी सी हैं
थीं समुन्दर चाहत कौन बुझाएं उसको
लौट के फिर घर आनें को तैयार हैं
अब वो बात नहीं कौन दुहराएं उसको
नितेश वर्मा
सर ये बे-मतलब कौन चढाएं उसको
थक चुकी हैं आँखें यूहीं तरसतें प्यासें
हर वक्त कौन अब ये समझाएं उसको
इक ख्वाहिश थीं जो अब मरी सी हैं
थीं समुन्दर चाहत कौन बुझाएं उसको
लौट के फिर घर आनें को तैयार हैं
अब वो बात नहीं कौन दुहराएं उसको
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment