Monday, 13 April 2015

इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम

क्यूं हर रात को यूं ख्वाब करते हो तुम
इन बारिशों से क्यूं जवाब करतें हो तुम

मुझमें और भी दरियां कोई समुन्दर हैं
मैं नहीं प्यासा क्यूं सराब करते हो तुम

ज़िंदा हैं ग़र मुझमें तेरा वजूद ऐ करम
तो क्यूं महफिल में शराब करते हो तुम

अलग करके यूं रख दी हैं जुबान हमारी
अब हिन्दी नहीं तो यूं उर्दू करते हो तुम  [काफिये की कमी]

नितेश वर्मा

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