Saturday, 11 April 2015

लोग गुजरें, मेरें गुजरें वक्त का दाम पूछ्ते हैं

तो क्या हुआ था हाल वो मेरा अंज़ाम पूछते हैं
लोग गुजरें, मेरें गुजरें वक्त का दाम पूछ्ते हैं

उँगलियों पे वो जो यूं शर्तें गिनानें वाले हैं लोग
जो लिये मेरा हुस्नें बाजार तुम्हें ज़ाम पूछते हैं

नितेश वर्मा 

No comments:

Post a Comment