Wednesday, 5 November 2014

तेरी उँगलियों पे रक्खा बोझ

के लो चलो अब ये सफर खत्म हुआ
तेरी नर्म उँगलियों के बीच
फँसी मेरी सख्त उँगलियाँ
तेरी उँगलियों पे रक्खा बोझ
अब खत्म हुआ

सीनें से लगानें की अब जरूरत नहीं
मिट्टी का खिलौना था
मिट्टी में अब मिलनें चला
बहता था शायद किसी समुन्दर-सा
परिंदों का क्या पता
मैं तो अपना घर ढूँढनें चला

सब नाखुश आज भी मिलें
मय्यत पे शोर और लोग दफनानें चलें
टूटा दिल आज भी मेरा
मेरे अपनें भी मुझे अब मनानें ना निकलें
सही हुआ थक गया था
कहाँ तक दौडता इसीलिए मर गया था

के लो चलो अब ये सफर खत्म हुआ
तेरी नर्म उँगलियों के बीच
फँसी मेरी सख्त उँगलियाँ
तेरी उँगलियों पे रक्खा बोझ
अब खत्म हुआ!

नितेश वर्मा

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