किस ओर ले चला हैं ये रस्ता मुझे
वो यूं रखता हैं बनाकर ज़स्ता मुझे
कहीं और जा के अँधेरें में ढूँढों मुझे
जो सब कहतें रहें थें यूं सस्ता मुझे
नाउम्मीद ही रहीं हैं वो बातें उसकी
डूबें रहें थें बतला के जो हँसता मुझे
इन्कार करके अभ्भी ज़ुर्म सह रहा
दिख रहा हैं हाले-दिल खस्ता मुझे
नितेश वर्मा
वो यूं रखता हैं बनाकर ज़स्ता मुझे
कहीं और जा के अँधेरें में ढूँढों मुझे
जो सब कहतें रहें थें यूं सस्ता मुझे
नाउम्मीद ही रहीं हैं वो बातें उसकी
डूबें रहें थें बतला के जो हँसता मुझे
इन्कार करके अभ्भी ज़ुर्म सह रहा
दिख रहा हैं हाले-दिल खस्ता मुझे
नितेश वर्मा
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