Sunday, 9 November 2014

किस ओर ले चला हैं ये रस्ता मुझे

किस ओर ले चला हैं ये रस्ता मुझे
वो यूं रखता हैं बनाकर ज़स्ता मुझे

कहीं और जा के अँधेरें में ढूँढों मुझे
जो सब कहतें रहें थें यूं सस्ता मुझे

नाउम्मीद ही रहीं हैं वो बातें उसकी
डूबें रहें थें बतला के जो हँसता मुझे

इन्कार करके अभ्भी ज़ुर्म सह रहा
दिख रहा हैं हाले-दिल खस्ता मुझे

नितेश वर्मा

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