बचा अब-तक उसका गुरूर कितना हैं
पहल-इश्क में था तो सुरूर कितना हैं
दिल किसी के ना होनें तक ही रिहा हैं
गैर की बाहों में महबूब क्रूर कितना हैं
मिला हैं जो वो तो पैगाम भी लाया हूँ
कब्र पे उसकें यें मिट्टी हुज़ूर कितना हैं
खुद की स्याहीं से मुझे बुनाया जिसनें
बहन की आँखों में बचा नूर कितना हैं
तौलतें रहें थे ता-उम्र अँधेरें में आकर
सबेरा देखा बाप ये मजबूर कितना हैं
निहार के उसनें गला ही घोंट दिया हैं
ये पडोसी मुल्क भी नासूर कितना हैं
नितेश वर्मा
पहल-इश्क में था तो सुरूर कितना हैं
दिल किसी के ना होनें तक ही रिहा हैं
गैर की बाहों में महबूब क्रूर कितना हैं
मिला हैं जो वो तो पैगाम भी लाया हूँ
कब्र पे उसकें यें मिट्टी हुज़ूर कितना हैं
खुद की स्याहीं से मुझे बुनाया जिसनें
बहन की आँखों में बचा नूर कितना हैं
तौलतें रहें थे ता-उम्र अँधेरें में आकर
सबेरा देखा बाप ये मजबूर कितना हैं
निहार के उसनें गला ही घोंट दिया हैं
ये पडोसी मुल्क भी नासूर कितना हैं
नितेश वर्मा
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