उनसे माँगी मेरी हर दुआ अधूरी रह गई
शायद खुदा की भी कोई मजबूरी रह गई
दो-दो गज़ नाप के मिली थीं मिट्टी यहाँ
मरनें के बाद यही एक बात पूरी रह गई
चरागों का दौर ही कुछ और था मुसाफिर
ढूँढनें आएं मकाँ तो मीलों की दूरी रह गई
अब हर अंजाम से हैं वाकिफ़ ये किनारा
लहरों ने सोचा समुन्द्र की मंज़ूरी रह गई
मैं तो खुद इस जिंदगी से परेशान हूँ वर्मा
खबर किसी और की बस कसूरी रह गई
नितेश वर्मा
शायद खुदा की भी कोई मजबूरी रह गई
दो-दो गज़ नाप के मिली थीं मिट्टी यहाँ
मरनें के बाद यही एक बात पूरी रह गई
चरागों का दौर ही कुछ और था मुसाफिर
ढूँढनें आएं मकाँ तो मीलों की दूरी रह गई
अब हर अंजाम से हैं वाकिफ़ ये किनारा
लहरों ने सोचा समुन्द्र की मंज़ूरी रह गई
मैं तो खुद इस जिंदगी से परेशान हूँ वर्मा
खबर किसी और की बस कसूरी रह गई
नितेश वर्मा
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