वो कैसा हमदर्द हैं
जो दे गया
मुझे बस दर्द हैं!
हवाएँ सर्द सी
चेहरा ज़र्द सा
चला था सब बस फर्ज़ सा!
तन्हा, उदास
था शायद वो मर्ज़ सा
ये ज़ुबां मेरा हैं बस दर्द का!
सुकूं अब कहीं नहीं
रहा कैसे
दिल मेरा ये खर्च सा!
टूटतें लफ़्ज़ बहकतें बातें
लिखता रहा कैसें
मैं भरा जोश गर्म सा!
टूट के बिखर गए अपनें सब
मगर
आँखों में दिखा नहीं कुछ शर्म सा!
नितेश वर्मा
जो दे गया
मुझे बस दर्द हैं!
हवाएँ सर्द सी
चेहरा ज़र्द सा
चला था सब बस फर्ज़ सा!
तन्हा, उदास
था शायद वो मर्ज़ सा
ये ज़ुबां मेरा हैं बस दर्द का!
सुकूं अब कहीं नहीं
रहा कैसे
दिल मेरा ये खर्च सा!
टूटतें लफ़्ज़ बहकतें बातें
लिखता रहा कैसें
मैं भरा जोश गर्म सा!
टूट के बिखर गए अपनें सब
मगर
आँखों में दिखा नहीं कुछ शर्म सा!
नितेश वर्मा
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