Saturday, 8 November 2014

उसे देखा हैं जो आँखों नें तो ख्याल आया हैं

उसे देखा हैं जो आँखों नें तो ख्याल आया हैं
उसके हर मलाल का मजबूर सवाल आया हैं

वो मुझसे अभ्भी पूछती हैं यूं निगाहें छुपाकर
ज़माना कहता हैं उसे कितना मज़ाल आया हैं

इस उँगलियों पे उससे गुनाहें गिनाकर आयें हैं
रोया हैं इस कदर की चेहरें पे जलाल आया हैं

धूल के बारिशों में ये दिल भी पिघल आया हैं
और वो कहती हैं की पत्थर हलाल को आया हैं

नितेश वर्मा

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