उसे देखा हैं जो आँखों नें तो ख्याल आया हैं
उसके हर मलाल का मजबूर सवाल आया हैं
वो मुझसे अभ्भी पूछती हैं यूं निगाहें छुपाकर
ज़माना कहता हैं उसे कितना मज़ाल आया हैं
इस उँगलियों पे उससे गुनाहें गिनाकर आयें हैं
रोया हैं इस कदर की चेहरें पे जलाल आया हैं
धूल के बारिशों में ये दिल भी पिघल आया हैं
और वो कहती हैं की पत्थर हलाल को आया हैं
नितेश वर्मा
उसके हर मलाल का मजबूर सवाल आया हैं
वो मुझसे अभ्भी पूछती हैं यूं निगाहें छुपाकर
ज़माना कहता हैं उसे कितना मज़ाल आया हैं
इस उँगलियों पे उससे गुनाहें गिनाकर आयें हैं
रोया हैं इस कदर की चेहरें पे जलाल आया हैं
धूल के बारिशों में ये दिल भी पिघल आया हैं
और वो कहती हैं की पत्थर हलाल को आया हैं
नितेश वर्मा
No comments:
Post a Comment