..क्या बताउं तुमेह मैं अपनी दिल की बात..
..हर बात होंठों की मोहताज़ नहीं..
..तुम हो समझे कब बातें मेरी..
..जो अभी खातिर तेरे मैं खुद से लड़ जाउँ अभी..
..आँखों के इशारें जुबां पे हैं मेरे बसे..
..हो इतने करीब तो मुझे इन्हें समझाओ ना..
..हैरतें और नशा हैं भरा आँखों में तेरे..
..इन्हें कभी जुबां से अपने बरसाओ ना..
..है ये रात मदहोस तुझमें मेरे होने का इसे एहसास दिलाओ ना..
..तुम हो मेरे मुझे मुझसे मेरे वजूदों को मिलाओ ना..
..सब रंगीन ये शमाँ तुझमें रंगी..
..मेरी मैली चादर को सजाओ ना..
..तुम खुद से कभी मेरी मेहफिल सजाओ ना..
..मुझे दिल मे अपने कभी यूं ही बसाओ ना..!
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..हर_बात_होंठों_की_मोहताज़_नहीं...pdf
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