Wednesday, 18 September 2013

..मन बांवराँ ये जान के भी तो मरे..!

..ओ रे साज़ना हैं तुझसे इसे कुछ कहना..
..बनके तेरा ही रहना या जीते-जी खुद मे मरना..
..सीनें से लगा ले इसे..
..नैंनों मे बसा ले इसे..
..दिल मे छुपा ले इसे..
..सुन ले तु कुछ इसके भी..
..सपनों से उतर के कभी..

..ज़िन्दगानी इसकी बन जा तु भी कभी..
..तुझ बिन यें उल्झा रहें खुद से ना जानें क्यूँ..
..सँवार के ये सपनें तेरे दौडा फिरे पीछे तेरे..
..तकता रहे राहें तेरे अब बिन मंज़िलों के बिन कसमों के..
..उल्झा रहे ये तेरे ही बातों मे..
..कहना ना मानें मेरा मेरी जबानों मे..
..होके अवारा ये चुरा के ये तुझसे ही नज़रें..
..देखा करे ये जी-भरे तुझे..
..मचलने लगे ये सीने मे बनके दो दिल..
..गुजरने लगे बिन तुम्हारें ये बस होके इक अधूरी सी ज़िन्दगी..
..लेने लगी अब ये साँसें जो ठहरी थी मेरी..
..आ तू ही बता दे इसे..
..तु नही किस्मत मे मेरे..
..कम से कम मन बांवराँ ये जान के भी तो मरे..!

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ओ_रे_साज़ना_हैं_तुझसे_इसे_कुछ_कहना.pdf

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