Sunday, 15 September 2013

..कोइ क्या सुधारेगा देश को..

..कोइ क्या सुधारेगा देश को..
..खुद की जान जब सँभलती नहीं..
..कोइ क्या करेगा राजनीतिक दावा..
..जब सत्तें में कोइ उनका बाप नहीं..
..जब बिकाउ हो चली हैं सारी कायनात..

..तो फिर ये थानेदार और फ़ौज क्यूँ नहीं..
..लगता हैं बस बेबसी और गुस्से आलम..
..जब दिखाती हैं मिडीया सरहद पार खडे बेबस फ़ौजें हमारें..
..हैं  वहा कुछ क्या शायद मुझे पता नहीं..
..दुश्मन तो भरे हैं मन भर अन्दर ही अन्दर..
..इन्सानियत संग इमानों को भी हैं बेच चले ये सत्तों के ठेकेदार..
..सत्तें में हैं ये इतने उल्झे के उन्हें नहीं हैं खुद का कुछ होश..
..सरे-आम दलाली.. घुसखोरी..  बलत्कार.. हत्या जैसी कान्ड..
..इन्हें भला हैं क्यूँ नज़र नहीं आती..
..आँखों पे चढा ये खुद का इनका काला चश्मा..
..रंग बेरंग सा बनाता हैं..
..और मेरे लिखने से ये कुछ बदलेगा भी नहीं..
..ठीक तो अलग सहीं से कानों में जूँ की तरह रेंगेंगा भी नहीँ..
..करनी हैं देश-सेवा सुधारनी हैं सत्ता..
..करना हैं कुछ काम तो बंद करो यूं दूर से ही कुछ करना बकवास..
..खुली हैं सत्ता आओ कर लो पुरा अपना काम..
..हो सके तो आओ बढाओ देश का कुछ मान..
..नहीं तो बस यूँ ही खामोश रहों..
..आवाजें ना यूं पीठ पीछे उडाओ..
मैने देखा हैं कोशिशों की जीत होती हैं लिखने वालों की हार..!

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कोइ_क्या_सुधारेगा_देश_को.pdf

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