Saturday, 28 September 2013

..हौसलों के आगे कुछ सुना हैं मैने जीत सा बनता हैं..

..हौसला हैं बुलंद आवाजें हैं ढीठ..
..रात के कोने में सुलगती ये गीत..
..पीठ-पीछे ये तेरा उठना हैं लाजिम..
..मेरी मुठ्ठी में बंद तेरे किस्मत की लाठी..
..कब सुबह का जगना हैं..
..कब रात का सोना..


..सो के नहीं हैं मुझे तुझे खोना..
..सपनें-रातों में तु आता नहीं..
..हाथों से छूट के भी तु मेरे जाता नहीं..
..शामों की संगीतों में..
..तु उठता कुछ धुन सा हैं..
..बादलों में जैसे शाम का कुहां बनता हैं..
..मेरे इरादों में तु कुछ ढीठ सा हैं..
..मेरी हिम्मत में तु मेरी कुछ वजूद सा हैं..
..राहें मेरे भले बेगानें हो तुझसे..
..हद-पार कर कर..
..ये चले है..
..तुझसे ही मिलाने मुझे..
..तु मेरा हैं मुझमें कुछ तेरा सा बनता हैं..
..हौसलों में तु मेरे कुछ हिम्मत सा बनता हैं..
..बंद मुठ्ठी में मेरे सपनें सा दिखता हैं..
..मेरी बातों में कहानी सा बनता हैं..
..कुछ अलग नइ रवानी सा बनता हैं..
..हौसलों के आगे कुछ सुना हैं मैने जीत सा बनता हैं..
..हौसलों में बुलंद आवाजें हो तो..
..कुछ गीत सा बनता हैं..
..देखा हैं मैने बंद मुठ्ठी के सामने..
..कुछ जीत सा बनता हैं..!

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