Thursday, 19 September 2013

..तेरे साथ जीना अच्चा लगता हैं..!

..ऐ रात तु यूँ ही सदा बनी रह ज़िन्दगी मे मेरे..
..इन अन्धेरों मे जीना अच्छा लगता है..
..गहरी खामोशीयाँ.. बहती धीमी हवाएँ..
..धीमें-धीमें आँखों का लगना..
..और उस धीमी-धीमी बारिशों की रात में..


..सारी ख्वाहिशें मेरी मर जाती हैं धूल सी जाती हैं..
..मै फिर से जीनें को तैयार हो जाता हूँ..
..नइ बात के साथ नइ रात के साथ..
..अरमां फिर से जग जाते हैं मेरे..
..रातों की गहरी कौंध में हो जाती हैं..
..पहचान मेरे वजूद की..
..सारी बातें हो जाती हैं मेरी पूरी..
..फिर से रंग जाती हैं ज़िन्दगी मेरी..
..रात वो सारी राज़ें छुपा लेना चाहती हैं..
..चाहती हैं मुझे बनना खुद के काबिल..
..दिखाती हैं समझाती हैं सुनाती हैं..
..हर दांव-पेंच मुझे ये दुनियां-दारी के..
..मुहब्ब्त इतनी देखके जुड जाती हैं..
..खुद-ब-खुद हाथें मेरी नमाज़ों में..
..हाथों की लकीरों में फिर से तस्वीरें बन बैठी हैं तेरी..
..एक सुबह लिए मेरी..
..अए रात तु हैं बहोत वफादार जीना तो मुझे आता नहीं..
..बात-बात पे लेता हूँ कभी तेरा तो कभी खुद का सहारा..
..तु यूँ ही बनी रह हर-रोज़ ज़िन्दगी में मेरे..
..तेरे साथ जीना अच्चा लगता हैं..!

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ऐ_रात_तु_यूँ_ही_सदा_बनी_रह_ज़िन्दगी_मे_मेरे.pdf

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