..सावरियाँ आना हैं तेरी गली अब दिन-दुपहरियाँ..
..सावरियां खोना हैं भरी रैन अब सारी रात पहरियाँ..
..सावरियां होना हैं तेरी नींद अब मुझे आठों पहरियाँ..
..सावरियाँ आना हैं तेरी गली अब क्या रात..? क्या दिन..?
आठों पहरियाँ.. सावरियाँ..!
..हैं क्या वो बात या तेरी याद बांधे हैं मुझे..
..मेरी नज़रों से होंठों को तेरे.. सावरियाँ..
..पलके तेरे गिरे अरमां मेरे जां कितने बिखरे..
..दानें-ख्वाबों के कौन कबूतरों की तरह चुने..
..सारी रश्में फिर कौन झूठी वादों संग बुने..
..सावरियाँ रहना हैं क्या अब दूर मुझसे..
..दिन-रात संग क्या आठों पहरियां.. सावरियाँ..
..कितनी फरेबियत है आडे भोली चेहरे के सहारे..
..नैनों में सुरमां लगे तो फिर कोइ क्यूँ आंसू ना बहे..
..होंठों से छ्ल्के-छ्ल्के जाम आंखों में जगती सी प्यास..
..सावरियाँ जगे रहना हैं ख्बाबों विच तेरे याद..
..जैसे रात अंधेरे विरान हुआ संसार..
..सावरियाँ ना आना हैं अब तेरी गली अब आया समझ..
..क्यूं हैं रात ये अंधेरी मेरी तुझसे इतनी दूर खडी सावरियाँ..!
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सावरियाँ_आना_हैं_तेरी_गली_अब_दिन.pdf
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