..तेरे बातें.. ..तेरे वादें.. ..तेरे ये सारे फरेब..
..तेरे पैरों के आगे जलती ये समाजी बकैत..
..तु हरामी हैं फिर भी शाला कितना शातिर..
..तु कमीना हैं फिर भी कितनी शान से है जीता..
..ये हैं राजनीती कमीनों की सत्ता..
..यहां कौन हैं किसका पीता..
..खुद ठेकेदारों को भी नहीं हैं कुछ पता..
..ये सारी बातें समाजों की आड में..
..और ये समाज जाएँ भाड में..
..मैं अकेला ही सहीं हूं तेरे भीड से दूर..
..फिर भी तु क्यूँ हैं मेरे पिछे पडा..
..आखिर रख्खा क्या हैं नोटों के जालों मे..
..गरीबों के पसीनों मे..
..क्यूं है आखिर ऐसी नीति तेरी मेरे दुनियां पे क्यूं रख्खी है नज़रे तेरी..
..इन बातों का कोइ बात नहीं कोइ मतलब नहीं..
..राजनीति मुद्दा है ये आम बात नहीं..
..मसलें कभी ये बेनज़र नहीं चुप्पी बस होंठों तक का ही हैं..
..मेरे लिख्खे पन्नें कभी ये खामोश नहीं..
..नज़रें तेरे भले मुझसे बेनज़र हो..
..दामन कहा तक छुटा पाओगे..
..साँसें कहा तक छुडा पाओगे..!
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..मेरे_लिख्खे_पन्नें_कभी_ये_खामोश_नहीं...pdf