Monday, 5 August 2013

Soya Nahi Kal Raat Main Kahi..


सोया नहीं कल रात मैं कहीं.. उत्तराखंड की घटना ना हो जाए मेरी शहर..
कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए मेरी इस शहर भी..
राजनीतिक शासक वाले कही कल की भाँति ना रहे मुँह ताकते..
इंतजार करते रहे एक-दूसरे की पहल का..
और.. दूसरी तरफ़ हो बेहाल हाल मेरी शहर का..
उत्तराखंड डूब गया.. कल का सँजोयाँ शहर आज़ राख़ हो गया..
बेचैन मेरी साँसें.. भयभीत मेरी आँखें..
परेशां आज सारी शहर जगा रही है..
नाम अपनी करने को.. सत्ता अपनी जताने को..
कहीं फिर ना भेज दे इक छोटी टुकडी मेरे जवानों के..
हालातों से लडते वो.. खुद को डूबा दूसरों को बचाते वो..
आह..! लहूलुहान भी होके वो.. कितनी सरलता से मुस्काते..
कुछ बस की नहीं मेरी.. इक आम इंसान हूँ मै..
दो रुपऐ.. दो पैसे.. देने से क्या होगा..?
शायद ये मेरी सरकार को पता नही..
है ये मिडीयाँ जो हमारी कुछ बात है..
जो किसी तरीकों से करती है.. हरपल मदद हमारी..
धन्य हो मेरी भारत माँ जो ये सब देखके जिए जा रही हो..
कौन करेगा.. कैसे होगा.. कब होगा..?
बातें ये सत्ता की.. वो ही जाने..?
शायद अब मुझे ही निकलना होगा.. मुझे ही कुछ करना होगा..
हाँ यहीं सहीं होगा अब सारी शहर को होगा जागना..
और अपनी मुसिबतों से लडना होगा..!

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